चंबल हमेशा से रेत खनन माफिया के लिए सोने की मुर्गी जैसी रही है। इसमें माफिया को किसी भी तरह की खलल बर्दाश्त नहीं है। ऐसा क्यों हो रहा है? कुछ माह पहले एंदल सिंह के दूसरे पुत्र राहुल सिंह कंषाना ने जब अपने इलाके में टोल नाके पर खुलेआम गोली चलाई तो उनके खिलाफ कुछ नहीं हुआ। इनके अपराध को बढ़ावा मिला। प्रदेश में इस तरह का पहला मामला नहीं है।
पहले भी जनप्रतिनिधियों के परिजन कानून को हाथ में लेते दिखे। वर्ष २०१४ में भाजपा विधायक जालम सिंह पटेल के पुत्र मोनू पटेल ने पिता के साथ मिलकर तांडव मचा दिया था। केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल के पुत्र प्रबल ने गोटेगांव में कुछ मासूम लोगों पर जानलेवा हमला कर दिया। इंदौर के भाजपा विधायक आकाश विजयवर्गीय की बैटमार हरकत को तो सोशल मीडिया पर सबने ही देखा। उन्हें विधायक होने का इतना गुरूर हुआ कि नगर निगम के एक अधिकारी को खुलेआम क्रिकेट बैट से पीटकर दहशत फैलाने की कोशिश की। मामला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक पहुंचा और उन्होंने नाराजगी भी जताई, लेकिन कार्रवाई शून्य रही।
आमतौर पर देखा गया है कि राजनीतिक दल ऐसे मामलों में किसी दबाव या अन्य कारण से दोषी जनप्रतिनिधि पर कार्रवाई नहीं कर पाते। राजनीतिक महत्वकांक्षाएं, धनबल और बाहुबल या सत्ता का लोभ ऐसे कारण होते हैं, जिनके चलते उक्त मामलों में हमेशा चुप्पी साध ली जाती है या कार्रवाई का ढोंग किया जाता है। जिस तेजी से ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं, उनसे आमजन के मन में खौफ जगह बना रहा है। लोकतंत्र में ऐसा खौफ बेहद डरावना है। यह लोकतंत्र की मूल भावना को क्षति पहुंचाएगा। उक्त मामलों में सख्त कार्रवाई नहीं हुई तो कानून से लोगों का विश्वास डिगेगा जो अराजकता को जन्म देगा। एक अपराध से दूसरा अपराध जन्म लेता जाएगा और स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाएगी।