रेलवे स्टेशन की इस रोड पर पुलिस वाले तभी दिखते हैं, जब लोडिंग वाहन आते हैं। इन लोडिंग गाड़ी वालों को भी पता है कि कब, किस पुलिसवाले को पैसे देना है। हालांकि कोई भी पुलिसवाला हाथ में खुद पैसे नहीं लेता। इसके लिए एक एवजी को तैनात कर रखा है, पैसे हाथ में लेने का काम उसी का है, भले ही साथ में पुलिसवाला जाए। वह पुलिसकर्मी की बाइक पर पीछे बैठा रहता है और एक के बाद एक हर लोडिंग चालक से वसूली चलती जाती है। इसके साथ ही नो पार्किंग, ठेले वालों से भी ये ही पुलिसवाले और एवजी पैसा लेते हैं।
विवाद करेंगे तो गाड़ी ले जाएंगे
रिपोर्टर- दादा ये क्या रोज की वसूली?
वाहन चालक- हां भैया, क्या करें। इधर नो एंट्री है, इनसे विवाद कौन करे, नहीं तो गाड़ी ले जाएंगे।
रिपोर्टर- ये लडक़ा कौन था?
वाहन चालक- ये लोग खुद हाथ में पैसा नहीं लेते, लडक़े के माध्यम से काम करते हैं।
रिपोर्टर- आपकी बस है कि कोई ओर गाड़ी?
वाहन चालक- मेरी लोडिंग गाड़ी है।
रिपोर्टर- कितना पैसा लेते है।
वाहन चालक- मुझसे तो एक फेरे का 20 रुपए लेते हैं।
रिपोर्टर- कितने पुलिसवाले आते है?
वाहन चालक- अलग-अलग बदलते रहते हैं, लेकिन लडक़ा वही रहता है। उसमें ये लोग ट्रैफिक वालों का मामला भी सुलझा लेते हैं।
सबके लिए अलग रेट
इन वाहनों के लिए पुलिसकर्मियों ने रेट तय कर रखे हैं। दिन में ज्यादा फेरे लगाने वाले वाहनों से 20 से 50 रुपए प्रति फेरा वसूली की जाती है, जबकि बड़े वाहनों से 100 रुपए प्रति फेरा लेते हैं। रेलवे स्टेशन, यशवंत प्लाजा, यूनिवर्सिटी के आसपास लोडिंग वाहनों, ठेले वालों से भी हर दिन का पैसा तय है। इनसे 50 से 100 रुपए हर दिन के लिए जा रहे हैं।
बोलने से डरते हैं
थाने वाले पुलिसकर्मी अगर एवजी रखकर वसूली कर रहे हैं, तो ये बहुत ही गलत है। उन पर कार्रवाई करूंगा।
हरिनारायणचारी मिश्रा, डीआईजी