वैसे तो यह बात नई नहीं है, पर जब इस तरह के दृश्य देखने को मिलते हैं आंखें रूक साी जाती हैं। पुरुषवादी समाज के बीच अगर पुरुषों के बजाय कोई महिला का स्थान दिखे तो हर किसी को कुछ अजीब ही लगता है। पर जब बेटियां कहीं पीछे नहीं रह रही हैं तो भला अपने माता पिता को मुखग्रि देने का भी अधिकार उनका ही है। जिन माता पिता ने पालापोसा काबिल बनाया उनके लिए समाज के पुरुषवादी जैसे नियम को तोडऩे में कोई हर्ज नही है।
दोनों बेटियों ने सारी रस्में एक बेटे की तरह पूरी की
बुधवार को ये दृश्य था बायपास पर प्लेटिनम पैराडाइज टाउनशिप में रहने वाले मेहता परिवार का। बैंक ऑफ इंडिया से रिटायर्ड शीलेश मेहता का बीमारी के बाद निधन हो गया। परिवार में उनकी पत्नी व बेटियां महिमा और प्रज्ञा हैं। एक बैंगलुरु में साइंटिस्ट है तो दूसरी यहीं रहकर उच्च अध्ययन कर रही है। पिता के निधन के बाद रिश्तेदारों के समक्ष ये प्रश्न था कि बेटा न होने से उनकी चिता को मुखाग्नि कौन देगा? ऐसे में महिमा और प्रज्ञा ने उन्हें मुखाग्नि देने का निर्णय किया। चिता सजी तो दोनों बेटियों ने सारी रस्में एक बेटे की तरह पूरी की। उसके बाद विजयनगर के मुक्तिधाम में अंतिम संस्कार किया तो दोनों बेटियों ने ही मुखाग्नि दी।
बुधवार को ये दृश्य था बायपास पर प्लेटिनम पैराडाइज टाउनशिप में रहने वाले मेहता परिवार का। बैंक ऑफ इंडिया से रिटायर्ड शीलेश मेहता का बीमारी के बाद निधन हो गया। परिवार में उनकी पत्नी व बेटियां महिमा और प्रज्ञा हैं। एक बैंगलुरु में साइंटिस्ट है तो दूसरी यहीं रहकर उच्च अध्ययन कर रही है। पिता के निधन के बाद रिश्तेदारों के समक्ष ये प्रश्न था कि बेटा न होने से उनकी चिता को मुखाग्नि कौन देगा? ऐसे में महिमा और प्रज्ञा ने उन्हें मुखाग्नि देने का निर्णय किया। चिता सजी तो दोनों बेटियों ने सारी रस्में एक बेटे की तरह पूरी की। उसके बाद विजयनगर के मुक्तिधाम में अंतिम संस्कार किया तो दोनों बेटियों ने ही मुखाग्नि दी।