कोरोना का उपचार करवाकर ठीक हुए संक्रमितों की सेहत को लेकर भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) ने एक शोध किया है। आइआइटी इंदौर में इंफेक्शन बायो इंजीनियरिंग के प्राध्यापक डा. हेमचंद्र झा और उनके सहयोगियों चारु सोनकर, वैष्णवी हसे, दुर्बा बनर्जी, डा. राजेश कुमार के साथ ही एनआइटी रायपुर के डा. अवनीश कुमार ने मिलकर ये शोध किया।
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उनका शोधपत्र कैनेडियन जर्नल ऑफ केमिस्ट्री में प्रकाशित भी हुआ। कोरोना संक्रमण का उपचार करवाने के बाद स्वस्थ्य हुए मरीजों इस शोध के अनुसार कोरोना वायरस ने संक्रमितों के शरीर के कई अंगों को बुरी तरह प्रभावित किया है. संक्रमितों के फेफड़े, गुर्दे, हृदय, त्वचा और दिमाग पर खासतौर पर बहुत बुरा असर पड़ा है.
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इन शोधार्थियों का मानना है कि दरअसल कोविड-19 की अभी तक कोई व्यापक दवा नहीं आई है। संक्रमितों को ठीक करने के लिए अन्य बीमारियों के इलाज में उपयोग होने वाली दवाइयां दी गई है। शोध करने वाली टीम ने पाया कि संक्रमित हुए लोग अब भी कई गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं।
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शोधपत्र के अनुसार कोविड-19 रोगियों के इलाज के दौरान स्टेरायड का उपयोग किया गया जिससे संक्रमितों की सेहत पर असर पड़ा है। स्वास्थ्य संबंधी कई दुष्प्रभाव सामने आए हैं।
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शोध में दवाओं और उनके विनाशकारी परिणामों की पूरी समझ होने की जरूरत जताई गई है। कार्टिकोस्टेराइड्स के लंबे समय तक इस्तेमाल से गंभीर दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
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गौरतलब है कि कोरोना की पहली और दूसरी लहर के बाद भी इसी तरह की समस्या का सामने आई थी। कई मरीजों को पेट से संबंधित दिक्कतें भी सामने आई थी। अवसाद की स्थिति तो कई मरीजों में पाई गई थी और उन्हें इससे उबरने के लिए मनोचिकित्सक की मदद लेनी पड़ी थी।
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शोधार्थियों का साफ कहना है कि कोरोना वायरस और मेजबान रिसेप्टर की परस्पर क्रिया से कोविड-19 रोगियों में साइटोकिन स्टॉर्म होता है, जिससे मृत्यु सहित कई प्रकार के इम्युनोपैथोलॉजिकल परिणाम सामने आए हैं। इसे लेकर अभी कोई दवा तैयार ही नहीं हुई है जोकि बेहद चिंताजनक है।