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3500 नहीं सिर्फ 100 रुपए में ये डिवाइस बता देगा कैंसर है या नहीं

locationइंदौरPublished: Sep 08, 2018 02:17:34 pm

Submitted by:

amit mandloi

निरामई ने कैंसर जांच की 10 गुना सस्ती मशीन की डवलप

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3500 नहीं सिर्फ 100 रुपए में ये डिवाइस बता देगा कैंसर है या नहीं

इंदौर. बाजार में मैमोग्राफी (ब्रेस्ट कैंसर की जांच) के लिए 3500 रुपए तक लगते हैं, लेकिन आइटी एक्सपर्ट गीथा मंजूनाथ के स्टार्टअप निरामई से महज 100 रुपए में इसकी जांच हो जाती है। यह एक सस्ता और पोर्टेबल कैंसर डिटेक्शन डिवाइस है। हालांकि ये सुविधा सिर्फ ग्रामीण महिलाओं के लिए है। हॉस्पिटल में इसके एवज में 1 हजार रुपए खर्च करने पड़ते हैं, क्योंकि इसमें रिपोट्र्स और मशीन्स का खर्चा भी शामिल है। एक मैमोग्राफी मशीन की कीमत में 10 निरामाई सॉल्युशन्स लगाई जा सकती हैं। इसलिए गीथा चाहती हैं कि इन्हें हर जिले के सिविल हॉस्पिटल में लगाया जाए। इसके लिए सरकार से चर्चा भी चल रही है।
स्टार्टअप फिलहाल कर्नाटक, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में ही संचालित है, लेकिन गीथा अब इसे मप्र सहित पूरे देश में लागू करना चाहती है। उन्होंने बताया, मप्र में एनजीओ से चर्चा चल रही है। सब कुछ ठीक रहा तो यहां भी कैंप लगाकर 100 रुपए में महिलाओं की जांच की जाएगी। वे 30 सितंबर को होने वाली टेडएक्स नवलखा में स्पीकर के रूप में शामिल होंगे। उनके इस सस्ते और पोर्टेबल डिवाइस की दुनियाभर में चर्चा है। मशीन लर्निंग एल्गोरिदम, बिग डाटा एनालिटिक्स और थर्मल इमेजिंग प्रोसेसिंग की मदद से ब्रेस्ट कैंसर की जांच की जाती है। बेंगलुरु बेस्ड स्टार्टअप पूरी तरह मेड इन इंडिया है, लेकिन सिंगापुर, जापान, फिलिपींस जैसे देशों से भी इसकी डिमांड आ रही है। हालांकि गीथा ने प्राथमिकता देश को दी है। उनका कहना है कि डिवाइस की मदद से देश की 100 फीसदी महिलाओं की जांच कराना प्राथमिक लक्ष्य है।
कजिन को कैंसर हुआ तो बनाया मिशन

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गीथा ने बताया, 2015 में कजिन को कैंसर हुआ। उन्होंने इसके कारणों पर काम किया। पता चला कि अर्ली डिटेक्शन ही एकमात्र उपचार है। आइटी पेशेवर और रिसर्च ग्रुप की हेड होने के नाते गीथा ने इस पर काम भी शुरू किया। ब्रेस्ट थर्मोग्राफी से शुरुआत की। इसके बाद डिटेक्शन के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद ली और सफलता मिल गई। जनवरी 2017 में अपनी नौकरी छोड़ पूरी तरह स्टार्टअप में जुड़ गई और इस डिवाइस को इजाद किया।
ग्रीन लाइट पर नॉर्मल, रेड आई तो खतरा

गीथा ने बताया, ग्रामीण क्षेत्रों के कैंप्स में जांच ट्रैफिक सिग्नल की रेड, ऑरेंज और ग्रीन लाइट की तर्ज पर होती है। स्केनिंग के बाद ग्रीन लाइट आई तो नॉर्मल। ऑरेज लाइट पर पेशेंट्स को ध्यान रखने और सावधानी बरतने की सलाह दी जाती है। रेड लाइट आती है तो उसे जांच के लिए भेजा जाता है। इसकी खास बात यह है कि हर एज ग्रुप के लोगों की जांच होती है, जबकि मैमोग्राफी सिर्फ 45 साल से अधिक उम्र वालों के लिए होती है। कैंसर पैशेंट्स की बेटी को भी इसकी आशंका रहती है, इसलिए डिटेक्शन पर जल्द अच्छा और सस्ता इलाज हो जाता है।
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