बड़वानी से लाए गए बच्चे को शिशुरोग विभाग के डॉ. निर्भय सिंह मेहता की यूनिट में भर्ती किया गया। इतने छोटे शिशु में हीमो डायलिसिस करना तकनीकी रूप से कठिन होता है। ऐसे में नेफ्रोलॉजी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. जयसिंह अरोरा और डॉ. ईशा तिवारी अरोरा द्वारा पेरिटोनियल डायलिसिस किया गया। टीम में रेजिडेंट डॉ. विनय नगर व डॉ. आयुषी अग्रवाल भी शामिल रहीं। एक दिन में ही बच्चे की हालत में काफी सुधार है।
सुपर स्पेशयलिटी अस्पताल जाएं मरीज नेफ्रोलॉजी विभाग के डॉ. जयसिंह और डॉ. ईशा ने बताया कि पीडियाट्रिक नेफ्रोलॉजी से संबंधित सेवाएं जैसे-नेफ्रोटिक सिंड्रोम, ईएसकेडी, डायलिसिस आदि सुपर स्पेशिलिटी में शुरू हो चुकी हैं। पेरिटोनियल डायलिसिस की समुचित जानकारी नहीं होने से मरीज इस पद्धति के लाभ से वंचित रह जाते हैं। समय पर एक्यूट या क्रोनिक पेरिटोनियल डायलिसिस करने से मरीजों में काफी सुधार देखा गया है। किडनी की बीमारी से जूझ रहे मरीजों को सप्ताह में एक या दो बार डायलिसिस करवाने अस्पताल जाना पड़ता है। मरीजों का पूरा दिन डायलिसिस करवाने में चला जाता है। ऐसे मरीजों के लिए पेरिटोनियल डायलिसिस अधिक सुविधाजनक प्रक्रिया है।
मरीजों को ट्रेनिंग भी दे रहे सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में पेरिटोनियल डायलिसिस की मरीजों को ट्रेनिंग भी दी जा रही है। इसके लिए अलग विभाग तैयार किया गया है। इसमें थैलेसीमिया पीडि़त बच्चों को भी काफी लाभ मिलता है।
ऐसे समझें राहत की बात 5 से 7 दिन मरीज व उनके परिजन को ट्रेनिंग दी जाती है। इसमें मरीज घर पर स्वत: डायलिसिस कर सकते हैं। उन्हें माह में एक बार चेकअप के लिए ही अस्पताल आना पड़ेगा।
- डायलिसिस दो प्रकार की होती है। एक- हीमो डायलिसिस और दूसरी पेरिटोनियल डायलिसिस। - पेरिटोनियल डायलिसिस की क्षमता खत्म होने के बाद ही हीमो डायलिसिस की जरूरत होगी। इंदौर में हीमो डायलिसिस ले रहे 50 प्रतिशत से ज्यादा मरीजों को पेरिटोनियल डायलिसिस से लाभ मिल सकता है।
यह होती है प्रक्रिया सर्जरी के माध्यम से शरीर में एक ट्यूब डाली जाती है, जो बाहर दिखाई नहीं देती। 6 सप्ताह बाद पेट से बेकार पानी बाहर निकाल दिया जाता है। विकसित देशों में इसी पद्धति का इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रक्रिया में किडनी की कार्यप्रणाली नियंत्रित रहती है। इसमेें शरीर स्वत: ही डायलिसिस करता है।
पेरेटोनियल डायलिसिस के फायदे - ट्रेनिंग लेकर खुद कर सकते हैं डायलिसिस। - किडनी प्राकृतिक रूप से करती है काम। - कम हो जाते हैं आहार संबंधी प्रतिबंध। - घर या अनुकूल स्थान पर कभी भी कर सकते हैं।
- सोते समय भी प्रक्रिया पूरी की जा सकती है। - यात्रा करने पर रोक नहीं होती।