इधर, राजगृही के मामले में सहकारिता विभाग की भूमिका संदिग्ध है। साधारण सभा के लिए विभाग के अफसरों से अनुमति मांगी थी, जो नहीं मिली। बताते हैं कि छाबड़ा के संबंध एक अधिकारी से काफी मधुर हैं। इस व्यवहार के चलते उन्होंने गतिविधियों पर रोक लगा रखी है। वे अनुमति नहीं होने दे रहे हैं। बताते हैं कि एक अफसर तो रिटायर होने जा रहे हैं, उनके जाने का इंतजार हो रहा है। सदस्यों को आशंका है कि मुहिम ठंडी पड़ी या कलेक्टर का प्रमोशन हो गया तो उन्हें न्याय कौन दिलाएगा।
सहकारिता विभाग तो साधारण सभा की अनुमति नहीं दे रहा है, लेकिन कई और काम भी हैं, जो अब तक नहीं हो सके। देवी अहिल्या व मजदूर पंचायत की जमीनों को फर्जी तरीके से खरीदने वालों से सरेंडर करवा दिया था। शपथ पत्र के बाद में कोर्ट की कार्रवाई भी कराई गई। जो पीछे हटा, उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया। अयोध्यापुरी उसका बड़ा उदाहरण है। ऐसे में राजगृही की जमीन खरीदने वाली दीप गणेश और सविता गृह निर्माण संस्था पर कोई कार्रवाई नहीं की गई।