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वह पॉपकॉर्न जरूर बेचता है पर वह समाजशास्त्र में एमए है। सेना में भर्ती के लिए कोशिश करता है पर अत्यधिक भीड़ आ जाने से भर्ती की तारीख एक महीना आगे बढ़ जाती है। बेरोजगार रूपक पॉपकॉर्न बेचने लगता है। पॉपकॉर्न बेचते हुए जो अनुभव उसे होते हैं, वही नाटक का कथ्य है।
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रूपक पढ़ा- लिखा है इसलिए वह देश, दुनिया और समाज पसर गहरी टिप्पणियां करता चलता है। शुरुआत में उसे ट्रेन में सेना के जवानों का दुव्र्यवहा झेलना पड़ता है। सैनिकों द्वारा अकारण अपमानित किए जाने से आहत रूपक सेना में जाने का सपना ही छोड़ देता है। वह ग्लोबलाइजेशन, घाटे की अर्थव्यवस्था, लोन लेने की प्रवृत्ति, लोन की किस्तों से परेशान लोगों सहित कई विषयों पर अपनी बात रखता है।
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सिद्धार्थ अवस्थी ने आंगिक और वाचिक अभिनय के जरिए ट्रेन मे हिलते हुए पैकेट बेचने, छुट्टे पैसों को लेकर बहस, टे्रन में बैठे लोगों के हाव-भाव आदि को रोचक तरीके से व्यक्त किया है। पिता के साथ यात्रा कर रही युवती की मोबाइल फोन पर बातचीत को उन्होंने बहुत अच्छी तरह व्यक्त किया।
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इसी तरह प्लेटफॉर्म पर घूमती पागल बच्ची के हाव-भाव और उसके यौन शोषण का प्रसंग भी उन्होंने अभिनय से जीवंत बनाया। बीच में गाने और नृत्य के जरिए नाटक को रोचक बनाने की कोशिश की गई पर वह नाकाम रही क्योंकि कहानी सशक्त नहीं है और संवाद भी साधारण हैं। नाटक को कुछ एडिट किया जाता तो बेहतर होता।