कांग्रेस प्रवक्ता और एडवोकेट प्रमोद द्विवेदी ने कहा कि कमिश्नर कार्यालय अन्यत्र स्थानांतरित किया जा रहा है। कमिश्नर कार्यालय की जमीन और भवन ही जिला कोर्ट के विस्तार के लिए दे दिए जाएं तो 100 करोड़ में ही यहां आधुनिक कोर्ट बन जाएगा। पुराने भवन में बदलाव के साथ यहां नया निर्माण भी किया जा सकता है। इसलिए जो काम 100 करोड़ में हो जाएगा उस पर 500 करोड़ खर्च कर शहर से बाहर किया जाना समझ से परे है।
कोर्ट क्यों नई जगह जाए, जबकि जगह की कमी कमिश्नर कार्यालय मिलने से पूरी हो रही है। यदि कोर्ट बाहर जाता है तो इस जमीन का दुरुपयोग होगा, यहां शहर में रहने वाले ही न्याय पाने नहीं आते, दूर-दराज इलाकों से भी लोग आते हैं तो क्या इनके लिए कोर्ट के साथ रेलवे स्टेशन और बस स्टैंड भी बाहर जाएगा।
कमीशनबाजी है मुख्य खेल द्विवेदी ने कहा कि एक तरफ जहां सरकार के पास वेतन बांटने के पैसे नहीं हैं, ओवरड्राफ्ट लेकर काम चल रहा है। सवा सौ लाख करोड़ से अधिक राशि कर्ज ले चुकी है, वहां कमीशन के फेर में और ठेकेदार मित्रों के लाभ के लिए भूमिपूजन करवाया जा रहा है।
कोर्ट को यहां बनाने से बचे हुए 400 करोड़़ की राशि से आधुनिक अस्पताल, स्कूल आदि बन सकते हैं। सवाल यह भी है कि इंदौर की सांसद न्यायालय को पुराने परिसर में रखने का आश्वासन देकर गईं थीं, अब वे किस मुंह में भूमिपूजन में जा रही हैं? संविधान की धारणा है कि न्याय त्वरित और सहज सुलभ होना चाहिए। कोर्ट को यहां से ले जाना इस धारणा के खिलाफ है।