किसानों का फसलों के संबंध में बदला यह मनोभाव पत्रिका ने धार जिले के मनावर क्षेत्र के किसानों से वीडियो कॉल के जरिए महसूस किया। ऐसा नहीं है कि रबी सीजन में करेले, भिंडी, केले और पपीते लगाने वाले किसानों की फसलें फलफूल नहीं पाई थीं। सभी किसानों की उपज भरपूर हुई थी, पर उन पर गाज कोरोना लॉकडाउन के कारण परिवहन, आवागमन और मंडियों में खरीद बिक्री पूरी तरह बंद हो जाने के कारण गिरी। सारी उपज खेतों में ही पड़ी-पड़ी सड़ गई। किसानों को भारी मन से इस फसल को निकाल बाहर फेंकना पड़ा, ताकि खरीफ की फसल के लिए खेत को तैयार किया जा सके। इसमें किसानों का जो नुकसान हुआ, उसका सिर्फ अंदाज ही लगाया जा सकता है।
किसान बताते हैं कि वे देश में अभी लॉकडाउन की स्थिति भांप नहीं पा रहे हैं और आशंकित हैं कि उन्हें निर्बाध रूप से मंडियों तक फसलें पहुंचाने के हालात शायद नहीं मिल पाएंगे। इसलिए वे कुछ अलग सोचने लगे हैं। इन हालात ने पूरे देश में ही कृषि के ढर्रे व फसलों के चयन के बारे में किसानों को पुनर्विचार पर विवश किया है। इसमें वे मक्का, मिर्ची और कपास जैसी परंपरागत फसलों को ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं, क्योंकि ये ऐसी फसलें हैं, जिन्हें किसान लंबे समय तक अपने पास ही सुरिक्षत व संरक्षित रख सकते हैं। उन्हें इसके लिए कोल्ड स्टोरेज पर अतिरिक्त पैसा खर्च नहीं करना पड़े और फसल को मंडियों तक पहुंचाने के साधन सुविधाएं न भी हों तो फसलों को बर्बाद होते देखने की नौबत न आए।
टमाटर व करेले का मोह छोड़ा
हर साल 15 एकड़ में करेला, टमाटर व लौकी लगाता रहा हूं। इन फसलों में बड़ी लागत लगानी पड़ी। फरवरी में इन फसलों का आंशिक उत्पादन मिलने लगा था, लेकिन मार्च कोरोना के नाम हो गया। उस समय खेत में जो कुछ बचा था, सब बर्बाद हो गया। दस से पंद्रह लाख रुपए नुकसान हो गया। अब 8 मई को ढाई एकड़ में करेले की बुवाई की है। बाकी जमीन का उपयोग मिर्च व मक्का की फसल लगाने में कर रहा हूं।
देवदास पाटीदार
कृषक, ग्राम देवला (मनावर)
पांच एकड़ रकबा घटाया
पिछली बार करेला और अन्य सब्जियां 7 एकड़ में लगाई थी। कोरोना का लॉकडाउन उसी समय शुरू हुआ। शुरू में कुछ दिन व्यापारी खेत पर आकर सब्जियां ले गए, पर बाद में उनका आना बंद हो गया। हमारे लिए भी सब्जियों को मंडी जाकर बेचने के रास्ते बंद हो गए। इस कारण बची सारी फसल बर्बाद हो गई। लाखों का नुकसान हो गया। सबक यह लिया कि इस बार सब्जियां केवल 2 एकड़ में उगाई हैं, जिससे घर की जरूरत पूरी हो जाएगी। बाकी बची कृषि भूमि पर कपास व मिर्ची लगा रहा हूं।
हितेश पाटीदार
कृषक, ग्राम देवला (मनावर)
11 एकड़ में केला बर्बाद
मैंने 15 एकड़ में केला लगाया था। यह उठा ही नहीं। खरीफ के लिए खेत तैयार करने के लिए 11 एकड़ में केले की फसल को नष्ट कर दिया, जिसमें 25-30 लाख रुपए का नुकसान हुआ। 4 एकड़ में केला रखा है, जिसका भी उठाव नहीं है। 10 एकड़ में करेला भी था, जो नष्ट हो गया। इसमें 10-12 लाख रुपए का नुकसान हुआ। अब ढाई एकड़ में करेला और 3 एकड़ में खीरा लगाया है। शेष भूमि पर कपास, मक्का व मिर्च लगाने की तैयारी की है।
भगवान भाई पाटीदार
कृषक, ग्राम लंगूर (मनावर)
अब 12 नहीं केवल 5 एकड़ में पपीता
मैं हर साल 12 एकड़ में पपीता लगाता रहा हूं। पर कोरोना लॉकडाउन ने मुझे हिला दिया है और इस बार भारी नुकसान दिया है। इस कारण इस बार केवल 5 एकड़ में पपीते की रोपाई की है। बाकी के 7 एकड़ मे मिर्च लगा रहा हूं। इसके अलावा 13 एकड़ जमीन और है, जिस पर मक्का व कपास लगाउंगा।
विजय राठौर
कृषक ग्राम गुलाटी (मनावर)