अतः 2 नवंबर, मंगलवार को प्रदोष में धनतेरस, काल यमदीपदान, शिवरात्रि व भौम प्रदोष के पर्व मनेंगे। साथ ही धन्वंतरि जयंती का पर्व भी इसी दिन मनाया जाएगा। 3 नवंबर, बुधवार को सुबह 9.02 बजे तक तेरस व बाद में चतुर्दशी लगेगी । रूप चतुर्दशी पर्व 3 नवंबर को ही मनेगा । यह पर्व अरुणोदय से पूर्व मनाया जाता है।
धर्मशास्त्रीय विषयों के आचार्य पं. रामचंद्र शर्मा वैदिक ने बताया, वर्ष 2019 व वर्ष 2020 में भी कुछ ऐसी ही स्थितियां बनी थीं। धर्मशास्त्रीय मानक ग्रंथ निर्णय सिंधु, धर्म सिंधु व अन्याय ग्रन्थों की मान्यता है कि जिस दिन सूर्यास्त के बाद एक घड़ी अधिक तक अमावस्या तिथि रहे उस दिन दीपावली मनाई जाती है। इस वर्ष 4 नवंबर गुरुवार को सूर्योदय से रात 2.44 बजे तक अमावस्या तिथि रहेगी। अतः 4 नवंबर गुरुवार को स्थिर लग्न सिंह भी अमावस्या तिथि में रहेगा, जो भगवती लक्ष्मी की स्थिरता बनाए रखेगा।
खास ज्योतिषीय योग-संयोग
4 नवंबर को चित्रा – स्वाति नक्षत्र, प्रीति- आयुष्मान योग, तुला राशि का चंद्रमा, तुला राशि का सूर्य व तुला राशि का ही बुध व मंगल होगा। सुख सुविधा का अधिपति शुक्र अपनी राशि तुला में रहेंगे। ग्रहों का राजा सूर्य, सेनापति मंगल, राजकुमार बुध व मन का प्रमुख कारक चंद्रमा माना जाता है। ये चारों ग्रह विशेष ज्योतिषीय महायोग बना रहे हैं। चंद्र व मंगल मिलकर लक्ष्मी-नारायण योग बनाएंगे, वहीं सूर्य व बुध का बुधादित्य योग बनेगा। इन दोनों योग में महालक्ष्मी धनवर्षा करेगी। गुरु-शनि दोनों ही ग्रह शनि की राशि मकर में शुभता के साथ स्थिरता प्रदान करेंगे।