मिसाइमैन के नाम से मशहूर डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का आज है जन्मदिन
इंदौर की यादों में आज भी ताजा है उनकी सादगी
जब एयरपोर्ट पर डॉ. अब्दुल कलाम ने पूछ लिया- बच्चों को खाना खिलाया या नहीं
रुखसाना मिर्जा/मुक्ता भावसार @ इंदौर. मिसाइलमैन के नाम से मशहूर डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम राष्ट्रपति बनने के बाद दो-तीन बार इंदौर आए और हर उस शख्स की यादों में बस गए जिसने उन्हें देखा-सुना। उनके जन्मदिन के मौके पर पत्रिका ने शहर की उन शिक्षण संस्थाओं में तलाश किया तो पाया कि उनकी सादगी, सरलता, गरिमा और प्रेरक उद्बोधन की यादें आज भी ताजा हैं। 23 दिसंबर 2002 को वे पहली बार इंदौर आए तो दो कार्यक्रमों में शामिल हुए। पहले क्लॉथ मार्केट वैष्णव हायर सेकंडरी स्कूल के स्वर्ण जयंती समारोह में और फिर एसजीएसआइटीएस के स्वर्ण जयंती समारोह में आए।
बच्चों को खाना खिलाया या नहीं वैष्णव स्कूल के चेयरमैन कमलनारायण भुराडिय़ा ने बताया कि उस दिन डॉ. कलाम के विमान में तकनीकी खराबी की वजह से वे एक घंटा देर से इंदौर पहुंचे। एयरपोर्ट पर ही उन्होंने स्कूल प्रबंधन से पूछ लिया कि देर हो गई है, आपने बच्चों को खाना खिला दिया या नहीं। हां का जवाब मिलने पर वे आगे बढ़े। स्कूल के प्राचार्य नवीन मुदगल उस वक्त शिक्षक थे, वे बताते हैं कि जब डॉ. कलाम स्कूल ग्राउंड में दाखिल हुए तब स्टूडेंट्स का बैंड उनकी अगवानी के लिए तैयार था। वे प्रोटोकॉल तोड़ते हुए बच्चों के बीच चले गए और उनका हाल-चाल पूछा। उनका आधे घंटे का उद्बोधन टीचर्स और स्टूडेंट्स दोनों के लिए प्रेरणादायी था।
‘मुझे बुला रहे हो तो सरकारी स्कूल के बच्चों को भी बुलाना होगा’ एमरल्ड हाइट्स इंटरनेशनल स्कूल के डायरेक्टर मुक्तेश्वर सिंह ने बताया, ३ अक्टूबर २००७ को डॉ. एपीजे कलाम स्कूल के इंटरेक्शन प्रोग्राम में शामिल होने के लिए आए थे। उस वक्त उनकी एक बात ने मुझे बेहद प्रभावित किया। जब हमने स्कूल की तरफ से उन्हें इनवाइट किया तो उन्होंने मुझसे कहा, मेरी सारी पढ़ाई सरकारी स्कूल में हुई है। आप मुझे बुला रहे हैं तो आपको शहर के सारे सरकारी स्कूलों के बच्चों को भी बुलाना होगा। उनकी ये बात दिल को छू गई। इसके बाद शहर के सभी स्कूलों में निमंत्रण भेजा। उस वक्त 100 से ज्यादा स्कूलों के 15 हजार से ज्यादा बच्चे उस कार्यक्रम में शामिल हुए। ऑडिटोरियम, बास्केटबॉल पोर्च और टेबल टेनिस हॉल में बच्चों ने उन्हें सुना। सभी जगह स्क्रीन लगाई थी। डॉ. कलाम बच्चों से इतना ज्यादा लगाव रखते थे कि उन्होंने मुझसे सवाल किया था कि इतनी संख्या में बच्चे होंगे तो हर बच्चे से मेरा इंटरेक्शन कैसे होगा।
हर बच्चा लेकर आया था कुछ खास डॉ. कलाम को जितने बच्चे प्रिय थे वे भी बच्चों के बीच उतने ही लोकप्रिय थे। हर बच्चा उनसे संवाद करना और उन्हें कुछ खास उपहार भेंट करना चाहता था। मुझे याद है कि एक बच्चे के पिता ने मुझसे कहा था, सिर्फ उसे डॉ. कलाम के पैर छूना है। इस कार्यक्रम में स्कूल के बच्चों ने उज्जैन के सूरज नागर के लिखे गीत ‘खुदा है जिनकी धडक़न में, रोम-रोम में राम है, धडक़े हिंदुस्तान जिस दिल में वो अब्दुल कलाम है’ पर लाइव परफॉर्मेंस दी थी।
सफलता के चार सूत्र प्रोग्राम में डॉ. कलाम ने बच्चों से कहा था, सफलता पाने के लिए चार बातों का ध्यान रखना जरूरी है। पहला- जीवन में लक्ष्य निर्धारित करें, दूसरा- ज्ञान की प्राप्ति करें, तीसरा- परिश्रम करें और चौथा- परेशानियों से लडऩे का हौसला रखें। उन्होंने कहा था, हम एक ऐसा देश बनाएंगे जहां मूल्यों के आधार पर शिक्षा मिले और किसी भी योग्य उम्मीदवार के साथ समाज द्वारा धन के आधार पर भेद नहीं हो।