मैं एक अधीर समय का यात्री हूं धैर्य मेरा पाथेय नहीं - साहित्यकार डॉ. विनय कुमार
हिन्दी साहित्य समिति में काव्यपाठ

इंदौर. ‘मैं एक अधीर समय का यात्री हूं, धैर्य मेरा पाथेय नहीं, कला मांगती है धैर्य, अधीर शिल्पी तो एक सिलबट्टा भी नहीं रच सकता, जब तुमने लिया होगा आकार पृथ्वी पर कितना धैर्य रहा होगा।’ यह पंक्तियां हैं कवि डॉ. विनय कुमार की जो उन्होंने दीदारगंज यक्षिणी प्रतिमा पर लिखी है। वे रविवार की सुबह मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति की ओर से आयोजित कार्यक्रम में काव्यपाठ कर रहे थे। उन्होंने यक्षिणी पुस्तक की रचना प्रक्रिया के बारे में चर्चा की और उसी संग्रह में से कुछ कविताएं सुनाईं।
डॉ. विनय कुमार ने कहा, यक्षिणी शब्द हमारे यहां आर्यों के आगमन से पहले से था। यक्ष और यक्षिणी देवता माने जाते थे। परमब्रह्म की संकल्पना बाद में आई। उन्होंने कहा, पटना के म्यूजियम में रखी यक्षिणी की प्रतिमा पर लिखते मैं केवल अतीत में नहीं था, बल्कि अपने समकाल में भी था। यह कविताएं पीछे जा कर नहीं लिखी हैं, बल्कि ये अपने ही समय में हैं। हम आज के सवालों के उत्तर आज में नहीं ढूंढ सकते, उसके लिए अतीत में जाना पड़ता है।
डॉ. विनय कुमार ने यक्षिणी संग्रह में से कुछ कविताएं पढ़ी, जिनमें से एक कविता उस प्रसंग की है, जब यक्षिणी को प्रदर्शन के लिए फ्रांस भेजा गया था, तब कवि ने कल्पना की है कि म्यूजियम में रखी अन्य प्रतिमाओं से उसका किस तरह संवाद हुआ होगा, ‘अवलोकितेश्वर ने धीरे से पूछा- प्रसन्न तो हो न शुभांगी, अब शुभांगी क्या कहती कि उसकी प्रसन्नता तो पत्थर की लकीर है , क्या दु:ख, क्या शोक और क्या प्रलय, विदीर्ण और चूर्ण भी होगी तो प्रसन्न ही...।’
समकालीनता से जोड़ती है यक्षिणी
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ. जवाहर चौधरी ने कहा, समय, समाज गतिशील होता है और रचनाधर्मी समय-काल पर नजर रखता है। यह कविताएं अतीत में ले जाती हैं पर समकालीनता से भी जोड़ती हैं। भाषा के स्तर पर, कथ्य के स्तर पर भी यह बहुत कुछ कहती हैं। पुस्तक पर चर्चा करते हुए डॉ. आशुतोष दुबे ने कहा, यक्षिणी की कविताएं समकालीनता से भटके बगैर अतीत में जाती हैं। यह पुस्तक क्लासिक काव्यकृतियों की स्मृतियों में ले जाती हैं। युवा कवि अंबर पांडे ने भी यक्षिणी पर विचार रखे। कार्यक्रम के प्रारंभ में डॉ. विनय कुमार और डॉ. जवाहर चौधरी का स्वागत समिति के प्रचार मंत्री अरविंद ओझा, प्रभु त्रिवेदी, गरिमा दुबे और रामचंद्र अवस्थी ने किया। अरविंद ओझा ने डॉ. विनय कुमार को समिति का कैलेेंडर और वीण की प्रति भेंट की। संचालन प्रदीप नवीन ने किया। आभार सदाशिव कौतुक ने माना। कार्यक्रम में सूर्यकांत नागर, ज्योति जैन, पुष्पा गर्ग, प्रदीप मिश्र, प्रदीप कांत, रजनी रमण शर्मा सहित अन्य साहित्यकार और साहित्यप्रेमी मौजूद थे।
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