25 से 50 हजार जनसंख्या की श्रेणी में नंबर वन बने रहने के लिए परिषद ने ट्रेंचिंग ग्राउंड पर इंदौर की सीख लेकर काम कर रहा है। ट्रेचिंग ग्राउंड में पहले कचरे में 15 से 30 फीट ऊंचे ढेर हुआ करते थे। जिसे अब खत्म कर दिया गया है। अब यहां प्लांटेशन लगाकर बगीचा तैयार किया जा रहा है। बदबूं से भी निजात मिल गई है। अलग-अलग प्रोसेसिंग यूनिट लगाकर कचरे और अपशिष्ट को खत्म किया जा रहा है। परिषद में 6 कचरा वाहनों से गीला और सूखा कचरा लाया जाता है। गीले कचरे के लिए यहां 6 पिट बनाई गई है। हर एक पिट 15.63 मैट्रिक टन की क्षमता है। 30 से 45 दिन में खाद तैयार हो जाती है। जिसे 1500 रुपए ट्रॉली में विक्रय किया जाता है। इसके साथ ही परिषद के गार्डन में उपयोग लिया जाता है।
सीएनडी प्लांट शुरू परिषद क्षेत्र में पड़े रहने वाले मबले को भी ट्रेचिंग ग्राउंड लोकर सीएनडी (कंट्रक्शन एंड डेमूलेशन वेस्ट) प्लांट के जरिये ईट, पत्थर, सरीये, लकड़ी को अलग किया जाता है। जरूरत के लिहाज से इनका उपयोग होता रहता है। इसके साथ यहां एमआरएफसी (मटेरियल रिकवरी फेसिलिटी सेंटर) के जरीए सूखे कचरे से कांचए प्लास्टिक, पुस्टा आदि अलग-अलग कर बेच दिया जाता है। इस संबंध में सीएमओ दिलीप श्रीवास्तव ने कहा, ट्रेचिंग ग्राउंड में अलग-अलग प्लांट लगाकर कचरे को निष्पादन किया जा रहा है। जल्द यहां गार्डन आकार लेगा।
एफएसटीपी से तैयार हो रहा उपयोग लायक पानी कुछ समय पहले ही ट्रेचिंग ग्राउंड में एफएसटीपी (फिकल स्लच ट्रीटमेंट प्लांट) तैयार किया गया है। अभी तक परिषद सैप्टी टैंक से अपशिष्ट पदार्थ निकालने के बाद फेंक देती थी। लेकिन अब एफएसटीपी के चलते सैप्टी टैंक खाली करने के बाद ट्रेंचिंग ग्राउंड लागया जाता है। इसके बाद एक टैंक में खाली करते हैं। यहां अलग-अलग प्रोसेस करके पानी का उपयोग यहां बन रहे बगीचे में किया जा रहा है।