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इंदौर

विधानसभा में हुई फजीहत, लोकसभा में कम हुए बूथ

एक, तीन, पांच और राऊ में सबसे ज्यादा कमी, जिले की नौ विधानसभा में आंकड़ा पहुंचा 241

इंदौरDec 22, 2018 / 10:48 am

Mohit Panchal

nriwachan aayog

विधानसभा में हुई फजीहत, लोकसभा में कम हुए बूथ

इंदौर। बूथ पर लंबी-लंबी लाइनों को खत्म करने के लिए निर्वाचन आयोग ने बूथ बढ़ाने का फैसला किया था, लेकिन उससे सुविधा की बजाय फजीहत हो गई। इस पर विभाग ने तय किया कि लोकसभा चुनाव के पहले बूथ कम किए जाएं। सभी विधानसभाओं से सूची बुलाई गई तो आंकड़ा २४१ पर पहुंच गया। एक, तीन, पांच और राऊ में सबसे ज्यादा बूथ कम हुए।
विधानसभा चुनाव कराने के बाद में निर्वाचन की टीम अब लोकसभा की तैयारियों में जुट हुई है। २६ दिसंबर से २५ जनवरी के बीच में मतदाताओं के नाम जोडऩे व घटाने का काम किया जाएगा। उससे पहले निर्वाचन ने एक बड़ा काम अपने हाथ में ले लिया। हाल ही में हुए चुनाव के दौरान देखने में आया कि कई ऐसे भी बूथ थे, जिनमें तीन से पांच सौ मतदाता ही थे।
उनमें व्यवस्था तो सारी जुटानी पड़ी। ये रिपोर्ट राज्य निवार्चन से निर्वाचन आयोग दिल्ली तक पहुंची। इस पर पिछले दिनों आयोग की ओर से निर्देश जारी हो गए कि ऐसे बूथों को कम कर मतदाताओं को दूसरे बूथों पर जोडऩे का काम किया जाए ताकि व्यवस्थाएं जुटाने में ज्यादा परेशानी ना आए।
देपालपुर में 298 बूथ, कम नहीं होंगे
इसको लेकर जिला निर्वाचन ने सभी नौ विधानसभाओं के रिटर्निंग ऑफिसरों को काम पर लगाया था, जिन्होंने रिपोर्ट पेश कर दी है। सबसे चौंकाने वाली जानकारी देपालपुर से आई। एसडीओ अदिति गर्ग ने साफ कर दिया कि उनके यहां २९८ ही बूथ हैं। अतिरिक्त बूथ नहीं हैं, जो कम किए जा सकें।
इधर, एक में ४२, तीन में ४१, पांच में ४१ और राऊ में ४५ बूथ कम किए गए। इसके अलावा सांवेर विधानसभा से ८, महू और चार नंबर से १६-१६ और दो नंबर से ३२ बूथ कम किए गए। उस हिसाब से अब इंदौर जिले में कुल २८७९ बूथ हैं, जबकि विधानसभा चुनाव में इसका आंकड़ा ३११४ था।
आयोग का खर्चा होगा कम
गौरतलब है कि बूथ बढऩे से एक सुविधा ये जरूर हो गई थी कि मतदाताओं को लाइन में नहीं लगना पड़ा। हालांकि कुछ पोलिंग पार्टियों ने रिपोॄटग करके बताया था कि दोपहर के बाद उनके पास कोई काम नहीं था। इन सब बिंदुओं पर गंभीरता से विचार किया गया।
हर बूथ पर पांच कर्मचारी निर्वाचन के तो सुरक्षा के लिए पुलिस या एसटीएएफ व साफ-सफाई के लिए निगम व जिला पंचायत की टीम को लगाना पड़ता था। उसके अतिरिक्त बसों की व्यवस्था भी जुटानी होती तो कर्मचारियों को भी काम का मानदेय देना पड़ता है। बूथ कम करने से उसकी बहुत बचत भी हो जाएगी।

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