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विधानसभा चुनाव : मध्यप्रदेश की इन सीटों पर लंबे समय से परिवारों ने ही कर रखा है कब्जा

locationइंदौरPublished: Oct 10, 2018 03:04:41 pm

Submitted by:

amit mandloi

इंदौर, धार, देवास की कई सीटों पर वर्षों से है एक ही परिवार का वर्चस्व

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इंदौर. राजनीति में वंशवाद पर सभी पार्टियां एक-दूसरे पर दोषारोपण करने से पीछे नहीं रहती, लेकिन हकीकत में दोनों ही प्रमुख पार्टियां इससे अछूती नहीं है। मालवा की ही आधा दर्जन से अधिक सीटों पर लंबे समय से परिवारों का कब्जा है। कहीं पिता के बाद बेटा और चाचा के बाद भतीजा विरासत संभाले हुए हैं तो किसी सीट पर पति के बाद पत्नी ने मोर्चा संभाल रखा है। परिवारों की पारंपरिक राजनीति के चक्कर में कई नेताओं का सियासी भविष्य पार्टी, प्रकोष्ठों के पदों तक ही सिमट कर रह गया। इस बार भी उन्हीं परिवार के लोग सीटों से दावा ठोंक रहे हैं। टिकट भी उन्हें ही मिलने की पूरी उम्मीद है। छ्व की खास रिपोर्ट…
इंदौर 3 : जोशी परिवार का रहा है दबदबा

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कांग्रेस के महेश जोशी 1980 से 1990 तक विधायक रहे। 1990 में भाजपा के गोपीकृष्ण नेमा ने जोशी को पराजित किया।
1993 में भी नेमा चुनाव जीते। 1998 में जोशी के भतीजे अश्विन जोशी को कांग्रेस ने मैदान में उतारा तो वे चुनाव जीत गए। अश्विन ने इसके बाद 2003 व 2008 में भी चुनाव जीता। 2013 में भाजपा की उषा ठाकुर ने अश्विन को मात दी। 2018 के चुनाव में भी इस बार दावेदारी जोशी परिवार से ही आ रही है। अश्विन को इस बार महेश जोशी के बेटे दीपक जोशी दावेदारी में टक्कर दे रहे हैं।
इंदौर 4 : इस बार भी गौड़ की दावेदारी मजबूत

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1993 में पहली बार लक्ष्मणसिंह गौड़ विधायक बने। 2008 में उनके निधन के बाद पत्नी मालिनी गौड़ विधायक बनीं।
1990 से 1993 तक कैलाश विजयवर्गीय यहां से विधायक रहे। 1993 में पहली बार लक्ष्मणसिंह गौड़ विधायक बने। 2008 में देवास में एक हादसे में उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव में भाजपा ने उनकी पत्नी मालिनी गौड़ को टिकट दिया और वे यहां से विधायक चुनी गईं। 2015 में भाजपा ने मालिनी को महापौर का टिकट दिया, जिसमें वे जीतीं। इस बार भी उनकी दावेदारी इसी सीट पर है।
देपालपुर : दो पटेल परिवार के बीच घूमती है सत्ता

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भाजपा के दिग्गज नेता निर्भयसिंह पटेल ने 1985 से विधायक रहे रामेश्वर पटेल को 1990 व 1993 में हराया था।

1998 के चुनाव में जगदीश पटेल चुनाव जीते और इसके बाद से देपालपुर में निर्भयसिंह पटेल और सत्यनाराण पटेल के बीच ही चुनाव लड़ा जा रहा है। 2003 में निर्भय के बेटे मनोज पटेल ने सत्यनारायण पटेल को हराकर इस सीट पर कब्जा किया तो 2008 में सत्यनारायण ने मनोज को हराया। 2013 में फिर सत्तू को हराकर मनोज विधायक बने। अब भी यही दोनों मुख्य दावेदार हैं।
देवास : राज परिवार का 1990 से है कब्जा

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1990 में देवास राजघराने के तुकोजीराव पवार ने मैदान संभाला और कांग्रेस के चंद्रप्रभाष शेखर को हराकर जीत हासिल की।

1990 से देवास विधानसभा सीट पर भी वंशवाद ही चलता आ रहा है। 1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के चंद्रप्रभाष शेखर देवास सीट से जीते थे। १९90 से 20१५ तक तुकोजीराव पवार विधायक रहे। २०१५ में उनके निधन के बाद हुए उप चुनाव में उनकी पत्नी गायत्री राजे पवार ने भाजपा के टिकट पर जीत हासिल की। इस बार भी उनका ही दावा मजबूत है।
बागली : पिता की सीट संभाल रहा बेटा

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देवास जिले के बागली विधानसभा सीट से लगभग आठ बार भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी विधायक रहे हैं।

1955 में कैलाश पहली बार गृह नगर हाटपीपल्या से नगर पालिका जीते थे। विधायक के लिए बागली से 1962 में जनसंघ की टिकट पर चुनाव लड़ा। इसके बाद इस सीट से बेटे दीपक जोशी भी एक बार विधायक रहे। इसके बाद बागली को आरक्षित कर दिया गया। 2008 में हाटपीपल्या से दीपक चुनाव लड़े और जीते। 2013 में भी उन्होंने यहीं से चुनाव जीता। एक बार फिर वे यहां से दावेदारी कर रहे हैं।
धार : वर्मा परिवार के ईद-गिर्द रहा है यह सीट

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भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री विक्रम वर्मा व उनके परिवार के आसपास ही इस सीट की कहानी रही है।

1990 में यहां विक्रम वर्मा ने जीत दर्ज की और 1993 में भी वे काबिज रहे। 1998 के चुनाव में कर्णसिंह पवार व 2003 में जयवंतसिंह राठौर चुनाव जीते। इस दौरान वर्मा राज्यसभा सदस्य थे और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे। 2008 में विक्रम वर्मा की पत्नी नीना वर्मा को भाजपा ने यहां से टिकट दिया और वे जीतीं। इसके बाद से ही वे धार से विधायक हैं। इस बार भी उन्हीं की दावेदारी है।
कुक्षी : पिता के बाद पुत्र ने संभाली कमान

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1972 से 1985 तक कुक्षी से स्व. प्रतापसिंह बघेल कांग्रेस से विधायक रहे। 1982 से 1985 तक वे राज्यमंत्री भी रहे।

1985 से 1990 तक प्रताप सिंह बघेल लोकसभा सांसद रहे। इसके बाद 1993 के विधानसभा चुनाव में उन्हें धरमपुरी सीट से टिकट दिया गया, जहां से वे जीते और 1998 तक विधायक रहे। जबकि कुक्षी से कांग्रेस से जमुना देवी लड़ीं और जीतीं। वर्तमान में प्रताप सिंह के पुत्र सुरेंद्रसिंह बघेल कुक्षी से विधायक हैं। इस बार भी इनकी दावेदारी मजबूत मानी जा हरी है। हालांकि, इस बार कई दावेदार और हैं।
बदनावर : दत्तीगांव की रहेगी मजबूत दावेदारी

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1990 से 1993 तक पटवा सरकार के दौरान स्व. प्रेमसिंह दत्तीगांव बदनावर से विधायक रहे।

1993 के विधानसभा चुनाव में प्रेमसिंह दत्तीगांव भाजपा के स्व. रमेशचंद्रसिंह गट्टू बना से हार गए। इसके बाद 2003 से 2013 तक लगातार दो बार कांग्रेस से उनके पुत्र राजवर्धनसिंह दत्तीगांव बदनावर से विधायक चुने गए। पिछला चुनाव (2013) में वे भाजपा के भंवरसिंह शेखावत से हार गए। इस बार भी दत्तीगांव यहां से दावेदारी पेश कर रहे हैं।
थांदला : भूरिया परिवार की फिर दावेदारी

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झाबुआ की थांदला सीट पर 1980 में पहली बार कांग्रेस से कांतिलाल भूरिया चुनाव जीते। 1998 तक वे ही यहां से विधायक रहे।

1998 में कांतिलाल लोकसभा में चले गए, पर झाबुआ की राजनीति में उनकी भतीजी कलावती भूरिया सक्रिया हैं। कलावती भी चौथी बार झाबुआ जिला पंचायत की अध्यक्ष चुनी गईं। इस सीट पर पिछली बार कांग्रेस ने कलावती को टिकट नहीं दिया था तो वे निर्दलिय ही चुनाव लड़ गई थीं, जिसके कारण कांग्रेस प्रत्याशी व खुद कलावति को हार का मुंह देखना पड़ा था। फिर वे दावेदारी कर रही हैं।

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