जब बेटा घर आएं वो दिन त्योहार श्रीनगर एनेक्स में रहने वाले मंजु व्यास और अतुल व्यास का बेटा अमित एयर फोर्स में विंग कमांडर है। लगभग 22 साल पहले अमित ने एयरफोर्स जॉइन की थी। व्यास दंपती कहते हैं कि हम प्रााउड पेरेंट हैं कि हमारा बेटा देश की रक्षा कर रहा है। इसके साथ ही घर में उसके न होने की टीस भी रहती है। उसके घर में न होने के कारण हर त्योहार हमने सादगी से ही मनाया और जब वह घर आया तभी त्योहार की धूमधाम हुई। मंजू कहती हैं कि जब २२ साल पहले जब वह पहली बार हमसे दूर गया, तब उसके जन्मदिन पर हमने उसे बेहद मिस किया। हमने उस दिन एक ब्लाइंड स्कूल में जाकर उसके बर्थडे का केक काटा। जब घर में उसकी पसंद की डिश बनी तो भी उसे बहुत मिस किया। हाल में ही में अमित का ट्रांस्फर एनसीसी में इंदौर में हुआ है और अब घर में सालों बाद रौनक लौटी है।
बेटी ही साथ में लाती है त्योहार बेटी स्नेहा के साथ करीब तीन साल से न तो दिवाली और न ही राखी का त्योहार सेलिब्रेट किया है। जब कभी वह घर में आती है, तब ही हम अपने सालभर के त्योहार एक साथ मना लेते हैं, वह नहीं होती है तो हम उसकी पसंद की डिशेश भी बनाकर नहीं खाते। बस यही उम्मीद लगी रहती है कि वह जल्दी आएगी। यह बात लेफ्टिनेंट स्नेहा मोडक की मम्मी प्रेरणा मोडक ने कही। प्रेरणा कहती हैं कि मैं एक मां हूं और जब बेटी आर्मी में है तो चिंता तो रहती ही है, लेकिन गर्व भी महसूस होता है। उसके बिना न कोई त्योहार न कोई तीज। उसे पूरनपोली बहुत पसंद है। जब वह आती है तो अपने हाथों से बनाकर खिलाती हूं और आते ही हम सब लोग सराफा पहुंच जाते हैं। कुछ दिन पहले जब वह आई थी, तब हमने रक्षाबंधन का त्योहार सेलिब्रेट कर लिया था। प्रेरणा ने कहा स्नेहा के पिता देवेंद्र भी एयरफोर्स से ही रिटायर्ड है।
10 साल से साथ में नहीं मनाया कोई त्योहार मेरा बेटा मेजर है और देश का रक्षक है, इसलिए मां होने के नाते उसकी सुरक्षा के लिए हर पल भगवान से प्रार्थना करती रहती हूं। वह 10 सालों से आर्मी में है। घर तो आता-जाता रहता है, लेकिन कभी त्योहारों पर उसका आना नहीं हो पाया। उसकी शादी हमने 2013 में की थी, उसकी तीन साल की बेटी भी है। जब भी नेटवर्क मिल जाता है बात कर लेते हैं। बेटे की याद तो अकसर सताती है, लेकिन उसकी तरह हमें स्ट्रांग रहना पड़ता है। यह बात गोयल विहार निवासी चंद्रावती जादौन ने अपने बेटे का नाम बताए बिना शेयर की। वे गवर्नमेंट स्कूल में प्रिंसिपल हैं और स्कूल के बच्चों को भी हमेशा देशभक्ति का पाठ पढ़ाती हैं।
पोती की शरारतें देखकर आती है बेटे की याद जब भी हमारा बेटा घर आता है, तो वही हमारी दिवाली-दशहरा और रक्षाबंधन होता है। बेटा पिछले ९ साल में इंडियन आर्मी में हैं। इन 9 सालों में हम दो बार दिवाली और दो बार राखी का त्योहार साथ में मना पाए हैं। कई बार तो आते ही तुरंत लौटकर आने के लिए फोन आ जाता है, उसे जीभर के देख भी नहीं पाते हैं। यह बात नायक विवेक पटवारी के पिता सुभाष पटवारी ने कही। सुभाष कैलोद गांव में रहते हैं और किसान हैं। वे कहते हैं बेटा फिलहाल ८ माह से जम्मू-कश्मीर में पोस्टेड है। बेटे की दो साल की बेटी भी है, उसकी शरारतें देखकर अकसर उसकी याद आ जाती है। पत्नी पिंका भी उसकी रक्षा की दुआएं करती रहती है।
चिट्ठियों का ही था सहारा एक कॉलेज में प्रोफेसर रागिनी सिंह के पिता प्रेम सिंह राजावत बीएसएफमें कमांडेंट थे। ८५ साल के उनके पिता अब जोधपुर में रहते हैं। रागिनी बताती हैं कि पिता ने १९६५ और १९७१ के युद्ध लड़े हैं। जब भाई-बहन छोटे थे तब पापा की पोस्टिंग राजस्थान में बाड़मेर, कश्मीर में पुंछ, राजोरी, अखनूर, आदि सेक्टर्स में रही थी, तब हम झाबुआ में रहते थे मां के साथ। उन दिनों मोबाइल फोन तो होते नहीं थे हम चिट्ठियों के जरिए ही पापा से बात करते थे। चिट्ठियों भी सीधे उन तक नहीं पहुंचती थी, क्योंकि वे आर्मी पोस्टल सर्विस के जरिए ही जा पाती थी। ज्यादातर त्योहार उनके बिना ही मनाए। एक बार उन्हें दिवाली पर छुट्टी मिली, तब हम भाई-बहन बेहद उत्साहित होकर खूब पटाखे ले आए पर अचानक छुट्टी रद्द हो गई। तब हममें से किसी ने पटाखे छुए भी नहीं। बाद में जब पाप घर आए तभी दिवाली मनाई। उन्होंने कहा, जब पापा कश्मीर में पोस्टेड थे तब मां रेडियो पर सीमा पर होने वाली हलचल की खबरें कान लगाकर सुनती थीं और हम सब इस चिंता में रहते थे कि कहीं कोई अनहोनी न हो जाए।