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जो अनकही बात भी समझते हैं,चलिए आज उन्हें समझते हैं-HAPPY FATHER’S DAY

locationइंदौरPublished: Jun 17, 2018 10:28:38 am

Submitted by:

amit mandloi

यूं तो लोग कहकर भी मुकर जाते हैं, पापा वो है जो बिन कहे ही सब कर जाते हैं…

fathers day

जो अनकही बात भी समझते हैं,चलिए आज उन्हें समझते हैं-HAPPY FATHER’S DAY

इंदौर. उनकी अंगुली पकडक़र हम दुनिया की सैर करते हैं, कांधे पर सवार होकर हवाओं में उडऩा सीखते हैं। हमारी हर जरूरत को पूरा करने के लिए वे हमेशा साथ खड़े रहते हैं। हमें छांव देने के लिए धूप में खुद जलते हैं। बेमतलब सी दुनिया में सिर्फ वे हमारे होते है। सपने तो हमारे होते हैं, लेकिन इन्हें पूरा करने का रास्ता वे दिखाते हैं। जी हां..वो पिता ही है जो बच्चों की मुस्कान में अपनी खुशियां ढूंढ़ता है। उनकी ख्वाहिशें पूरी करना, उन्हें जमाने के साथ कदम से कदम मिलाकर चलाने के लिए वह दिन-रात एक कर देता है। आज फादर्स डे पर शेयर कर रहे हैं एेसे ही पिता का संघर्ष…
लोग बोले- ट्विंस हैं, पालने के लिए दो मां चाहिए, इसलिए दूसरी मां मैं बन गया
अभिषेक बताते हैं कि वाइफ के मेडिकल टेस्ट के बाद डॉक्टर्स ने कहा कि ट्विंस हैं। जब दोनों बच्चे एभांश और एकांश ने जन्म लिया तो लोग बोले जुड़वां बच्चों की देखभाल मुश्किल होती है, दो बच्चे हैं तो दो मां चाहिए। बस फिर इनकी दूसरी मां मैं बन गया। अपने रुटीन्स और काम करने के तरीके बदल दिए। घर से सुबह ९ बजे जाता और लेटनाइट लौटता, लेकिन बच्चों के बाद पूरा शेड्यूल बदला। घर से निकलता लेट था और शाम ५ बजे घर लौट आता। पैरेन्टिंग क्लास में बच्चों की देखभाल करनी सीखी। उन्हें नहलाने, कपड़े पहनाने से लेकर स्कूल छोडऩे तक जाने लगा। इन्हीं दिनों समझ में आया कि पुरुषों के लिए पैरेंटिंग कितनी जरूरी होती है। फिर क्लासेस लेने लगा और अब तक १५ हजार लोगों को पैरेंटिंग के तरीके समझा चुका हूं।
पहली मदर फादर ही होता है
पिता बने अधिकांश लोगों को पैरेंटिंग स्किल्स नहीं आती है। इसलिए हर पिता से कहता हूं कि इसे सीखें। पैरेंट्स और बच्चों में जनरेशन गैप नहीं बल्कि इमोशनल गैप आ जाती है। असल में बच्चे की पहली मदर फादर होता है।
बेटी के हाथ में रस्सी बांधकर सोता, ताकि उठे तो पता चल सके
राजकुमार बताते हैं कि मैं और पत्नी उषा मूक बधिर हैं, लेकिन बच्चे मोनिका और योगेश सामान्य है। इसलिए जन्म के बाद से ही अहसास था कि परेशानी होगी। रात को सोने के बाद बेटी के हाथ में रस्सी बांध देता ताकि नींद खुले या उठे तो हमें पता चल सके। एक बार बेटी पलंग के नीचे गिरकर फंस गई। जोर-जोर से रो रही थी, लेकिन हमें सुनाई नहीं दिया। फिर पड़ोसियों से पता चला कि बच्ची कहीं पर रो रही है। अफसोस भी हुआ कि हमारी कमियों के कारण हमारी बच्ची परेशानी में न पड़ जाए। मूक बधिरों की परेशानी समझ हमने मूक बधिर संगठन की स्थापना की। इसमें फिलहाल ६०० से ज्यादा बच्चे जीने की कला सीख रहे हैं।
मातृभाषा के रूप में मिली साइन लैंग्वेज
मोनिका ने बताया मुझे साइन लैंग्वेज मातृभाषा के रूप में मिली है। इसलिए मुझे इस पर गर्व होता है। पैरेंट्स की वजह से ही मुझे बधिरों की खूबसूरत दुनिया का पता चल सका। मेरा पांच साल का बेटा भी साइन लैंग्वेज सीख रहा है ताकि घर में जो भी बात हो मां-पापा इसमें शामिल हो सकें।
स्नेहिल स्पर्श से धीरे-धीरे सुधर रहा जीवन, आने लगा बदलाव
डाउन सिंड्रोम और दिल में छेद होने से पीडि़त बच्चे को गोद लेने का साहसिक फैसला लेने वाले आदित्य तिवारी अपने फादरहूड से इस बच्चे का जीवन बदलने में लगे हुए हैं। जनवरी २०१६ को बिन्नी २२ माह का था जब उसे गोद लिया। उस समय वह चल भी नहीं पाता था और बोल भी नहीं पाता था। इसके अलावा कई अन्य परेशानियां भी थीं, लेकिन आदित्य की परवरिश में बिन्नी बदल रहा है। छह माह में उसने चलना शुरू कर दिया। तीन साल का था तो नर्सरी कक्षा में भर्ती किया, जहां सामान्य बच्चों के साथ रहता है। अब अपने काम खुद कर लेता है। म्यूजिक पर डांस करना, कार में घूमने, शॉपिंग के दौरान खुद के कपड़े पसंद करता और नहाना सबसे फेवरेट बन गया है। फैमिली के साथ भी अच्छी बॉन्डिंग बना ली है।
शेयर करता हूं हर बात
आदित्य ने बताया कि मैंने कभी भी हम दोनों में कोई लिमिटेशन नहीं रखी। जनरेशन गैप नहीं है। हर बात शेयर करता हूं। यहां तक मैंने आज ऑफिस में क्या किया, यह भी। वह ध्यान से सुनता है। अच्छा लगता है तो सिर हिला देता है। मेडिकली भी काफी अच्छा रिस्पॉन्स दे रहा है।
न्याय है पिता!
बच्चों के लिए स्नेह का अध्याय है पिता,
एक हौसला है, प्रेरणा है, राय है पिता!
बाहर से तो चट्टान-सा दिखता है परंतु,
अंदर से शुद्ध मोम का पर्याय है पिता!
बच्चों की परवरिश के लिए रहता समर्पित,
अपनत्व, क्षमा, प्रेम का समवाय है पिता!
जी-तोड़ श्रम पिता का देख बच्चों के मन में,
सम्मान है, सद्भाव है, सदुपाय है पिता!
रिश्तों की अदालत का यही सार है केवल,
माता है न्याय-पुस्तिका तो न्याय है पिता!
-प्रो. अजहर हाशमी
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