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जानी मानी ट्रैफिक वार्डन निर्मला पाठक का निधन, शाहरुख भी बोलते थे इन्हें दादी

locationइंदौरPublished: Feb 22, 2020 04:52:34 pm

Submitted by:

Manish Gite

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और बॉलीवुड एक्टर शाहरुख खान भी कर चुके हैं इंदौर की दादी की तारीफ…।

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इंदौर। मुंबई से लेकर इंदौर तक निर्मला पाठक ( nirmla pathak ) किसी नाम की मोहताज नहीं रहीं। मुंबई और मिनी बांबे नाम से फेमस इंदौर में किसी न किसी चौराहे पर निर्मला पाठक लोगों को नजर आ जाती रहीं। सबसे बुजुर्ग ट्रैफिक वार्डन ( traffic warden ) निर्मला पाठक अब लोगों को राह नहीं दिखा पाएंगी। लंबी बीमारी के बाद शनिवार को उन्होंने अंतिम सांस ली।

 

बुजुर्ग यातायात वार्डन निर्मला पाठक को हर कोई जानता है। फिल्म अभिनेता शाहरुख खान भी उनके फैन थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी उन्हें साइकिलवाली बाई कहकर संबोधित किया था। जब भी शहर में कोई बड़ा आयोजन होता था तो निर्मला पाठक वहां की ट्रैफिक व्यवस्था संभालने और लोगों को नियम पर चलने के लिए जागरूक करने पहुंच जाती थीं। एक बार साइकिल पर सवार होकर ट्रैफिक संभालते पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें देख लिया था। इंदिरा गांधी ने उन्हें नाम दिया था साइकिलवाली बाई। इसके अलावा बॉलीवुड एक्टर शाहरुख खान भी निर्मला पाठक के दिवाने थे। शाहरुख खान ने उन्हें अपने एक शो में बुलाया और इंदौर की दादी के खिताब से नवाजा था। उनके समर्पित कार्य को देख उनका सम्मान भी किया था। निर्मला पाठक ने कई सालों तक शहर की सड़कों पर यातायात व्‍यवस्‍था संभालकर अपनी अलग पहचान बनाई।

 

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मुंबई की रहने वाली थीं
शहर की सबसे बुजुर्ग महिला ट्रैफिक वार्डन निर्मला पाठक का देहावसान हो गया। 90 बरस की निर्मला पाठक लंबे समय से बीमार थी। बढ़ती उम्र और स्वास्थ्य खराब होने के बावजूद भी निर्मला पाठक शहर के कई चौराहों पर तैनात हो जाती थीं। घर में ही फिसल जाने के कारणवे चलने-फिरने में असमर्थ हो गई थीं। इसके बाद वे कोई खास आयोजन में ही नजर आती थीं। वे यहां से पहले मुंबई में भी ऐसे ही जुनून में रहती थीं। मुंबई की रहने वाली निर्मला पाठक कई सालों पहले इंदौर आकर बस गई थीं। वे अपने लवकुश आवास विहार निवास पर रह रही थी।

 

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गिरने के बाद नहीं उठीं
ट्रैफिक वार्डन नाम से चर्चित निर्मला पाठक जब स्वस्थ थीं, तब लकड़ी के सहारे ही आयोजन में पहुंच जाती थीं। एक बार बाथरूम में गिरने के बाद उन्हें चोट आ गई और फिर उनके शरीर ने भी साथ नहीं दिया। कोई उनसे मिलने आता था तो मुस्करा देती थीं। उनके जानकार अक्सर उनकी मदद के लिए पहुंच जाते थे।

 

लोगों की मदद से कटती रही जिंदगी
दादा निर्मला पाठक के बारे में उनके परिचित बताते हैं कि वे सभी को बेटा कहकर बुलाती थी। उनके मदद के लिए कई बेटे भी तैयार रहते थे। किसी आयोजन की जानकारी मिलती थी तो वे किसी भी बेटे की मदद से वहां तक पहुंच जाती थीं। निर्मला पाठक की सबसे छोटी बहन अंत तक उनकी सेवा करती रही।

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