सिम्फनी से देना हैं मेलोडी
आरएसजे सिम्फनी के संचालक और लीड सिंगर ऋषभ जैन और उनके छोटे भाई संभव इंदौर के ही हैं। यहां शास्त्रीय गायक सुनील मसूरकर से क्लासिकल म्यूजिक सीखने के बाद दो साल पहले मुंबई गए और ये ग्रुप बनाया। ऋषभ ने हाल ही में दो फिल्मों में म्यूजिक कंपोज भी किया है। ऋषभ कहते हैं कि इंदौर में इतने इंस्ट्रूमेंट्स वाले प्रोग्राम कम ही होते हैं। मेट्रो सिटीज में हमें बहुत प्रोग्राम्स मिलते हैं। अलका याग्निक के साथ खुद के गीतों का एक म्यूजिक अलबम बना चुके ऋषभ ने बताया कि उनके ग्रुप के कई कलाकर फिल्मों के लिए बजाते हैं और ज्यादातर आर्टिस्ट बड़े सिंगर्स के साथ वल्र्ड टूर्स पर जाते रहते हैं। हमारा उद्ेश्य सिम्फनी के जरिए लोगों को मेलोडी देना है।
आरएसजे सिम्फनी के संचालक और लीड सिंगर ऋषभ जैन और उनके छोटे भाई संभव इंदौर के ही हैं। यहां शास्त्रीय गायक सुनील मसूरकर से क्लासिकल म्यूजिक सीखने के बाद दो साल पहले मुंबई गए और ये ग्रुप बनाया। ऋषभ ने हाल ही में दो फिल्मों में म्यूजिक कंपोज भी किया है। ऋषभ कहते हैं कि इंदौर में इतने इंस्ट्रूमेंट्स वाले प्रोग्राम कम ही होते हैं। मेट्रो सिटीज में हमें बहुत प्रोग्राम्स मिलते हैं। अलका याग्निक के साथ खुद के गीतों का एक म्यूजिक अलबम बना चुके ऋषभ ने बताया कि उनके ग्रुप के कई कलाकर फिल्मों के लिए बजाते हैं और ज्यादातर आर्टिस्ट बड़े सिंगर्स के साथ वल्र्ड टूर्स पर जाते रहते हैं। हमारा उद्ेश्य सिम्फनी के जरिए लोगों को मेलोडी देना है।
लौट रहा लाइव रिकॉडिंग का दौर
ग्रुप के वॉयलिन ग्रुप के लीडर महेश राव ने कपूर एंड संस सहित कई फिल्मों में वॉयलिन बजाया है। उन्होंने कहा कि करीब २५ बरस से भी ज्यादा हो गए जब फिल्म म्यूजिक मे लाइव रिकॉर्डिंग का दौर पूरी तरह खत्म हो गया था। सिंथेसाइजर और डिजिटल रिकॉर्डिंग के दौर में लाइव रिकॉर्डिंग बीते दौर की चीज मान ली गई थी। मशीनी म्यूजिक की वजह से मेलोडी भी कम हो गई थी। अब फिर से मेलोडी की वापसी हो रही है। रहमान, शंकर अहसान , विशाल शेखर जैसे संगीतकार फिर लाइव रिकॉर्डिंंग कर रहे हैं। अब दौर बदलने लगा है। जो वादक कलाकार बेकार बैठे थे उन्हें फिर से काम मिलने लगा है।
ग्रुप के वॉयलिन ग्रुप के लीडर महेश राव ने कपूर एंड संस सहित कई फिल्मों में वॉयलिन बजाया है। उन्होंने कहा कि करीब २५ बरस से भी ज्यादा हो गए जब फिल्म म्यूजिक मे लाइव रिकॉर्डिंग का दौर पूरी तरह खत्म हो गया था। सिंथेसाइजर और डिजिटल रिकॉर्डिंग के दौर में लाइव रिकॉर्डिंग बीते दौर की चीज मान ली गई थी। मशीनी म्यूजिक की वजह से मेलोडी भी कम हो गई थी। अब फिर से मेलोडी की वापसी हो रही है। रहमान, शंकर अहसान , विशाल शेखर जैसे संगीतकार फिर लाइव रिकॉर्डिंंग कर रहे हैं। अब दौर बदलने लगा है। जो वादक कलाकार बेकार बैठे थे उन्हें फिर से काम मिलने लगा है।
इंदौर में नहीं है बड़े सिम्फनी बैंड शहर के इंटरनेशनल रिदम ग्रुप के राजेश मिश्रा ने कहा कि शहर में इतने बड़े सिम्फनी बैंड न होने की वजह ये है कि यहां मुंबई की तरह म्यूजिक इंडस्ट्री नहीं है। कलाकार तो हैं, लेकिन उनके लिए बड़े बजट के शोज भी होने चाहिए जो कि यहां नहीं होते। संगीतकार पिंटू कसेरा ने कहा कि शहर में वॉयलिन वादकों का बड़ा ग्रुप नहीं है। वैसे हमारा प्लान है और हम तैयारी कर रहे हैं कि यहां भी बड़ा सिम्फनी बैंड हो।
डेली कॉलेज में इंस्ट्रूमेंटल म्यूजिक सिखा रहे मनोज बावरा ने कहा कि शहर के कुछ स्कूलों में छोटे बैंड हैं। दरअसल स्कूलों का सेटअप प्रोफेशनल नहीं होता, वहां केवल एनुअल फंक्शन के परपज से काम होता है। इसलिए वहां बड़ा बैंड नहीं हो सकता। दूसरी बात ये कि अच्छा कलाकार तैयार होने में १० से १५ साल का टाइम लगता है। बड़े सिम्फनी बैंड के लिए बड़े बजट के आयोजन होना भी जरूरी है।