याचिकाकर्ता सीनियर एडवोकेट अविनाश सिरपुरकर की ओर से एडवोकेट सीमा शर्मा ने हाई कोर्ट में याचिका के तहत आवेदन पेश किया था कि महिला कैदियों में सेनटरी पैड तक नहीं दिए जा रहे हैं। जेलों में स्वास्थ्य से जुड़ीं अनिवार्य सुविधाएं भी नहीं हैं। कई जेलों में महिला डॉक्टर नहीं होने की जानकारी भी दी गई। इस पर कोर्ट ने शासन को दो बार नोटिस देकर जवाब मांगा था, जवाब नहीं आने पर आज जिला जज को आदेश दिए गए हैं।
याचिका में मुद्दा उठाया गया है कि पुरुषों की जेल की हालत भी बेहद खराब है। कैदियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई गाइड लाइन का भी पालन नहीं किया जा रहा है। प्रदेश की जेलों में कई ऐसे कैदी बंद हैं जो बेहद कम अर्थदंड जमा नहीं कर पाने के कारण सलाखों के पीछे हैं।
याचिकाकर्ता सीनियर एडवोकेट अविनाश सिरपुरकर ने कोर्ट से गुजारिश की है कि हमें ऐस कैदियों के अर्थदंड की राशि जमा करने की इजाजत दी जाए ताकि वे जेल से बाहर आ सकें। सिरपुरकर का कहना है कि कुछ लोग 500, 1000 और 2000 रुपए जुर्माना जमा नहीं कर पाने के कारण जेल में रहने को मजबूर हैं, यदि कोर्ट इजाजत देगी तो ऐसे आरोपियों के अर्थदंड हम जमा करेंगे। कोर्ट में इस पर सरकार को इंदौर हाई कोर्ट के क्षेत्राधिकार में आने वाली सभी जेलों में बंद कैदियों से जुड़ा पूरा रिकॉर्ड पेश करने के आदेश दिए हैं।