छह साल पहले इंदौर कस्बे को आठ तहसीलों में तब्दील कर दिया गया था। उसके अलावा महू, सांवेर, देपालपुर और हातोद तो थी ही सही। आमजन को सुविधा बताकर क्षेत्र का विभाजन किया गया। अफसरों में काम का बंटवारा किया गया। सभी को अपने-अपने क्षेत्र का एसडीओ बनाकर नजूल विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गई। उस समय प्रयास किया गया कि सेटअप के हिसाब से नियुक्तियां हो जाएं। बकायदा एक प्रस्ताव बनाकर सरकार को भेजा गया, पर उस पर कुछ नहीं हुआ।
सालभर बाद ये जरूर हुआ कि सरकार ने कर्मचारियों का सेवा काल 60 से दो साल बढ़ा दिया। अनुभवी कर्मचारियों के रुके रहने से थोड़ी राहत हो गई लेकिन तीन साल से कर्मचारियों के रिटायर होने का सिलसिला चल रहा है। जानकार कर्मचारी लगातार सेवानिवृत्त होते जा रहे हैं, जिससे स्थिति दिन-ब-दिन दयनीय हो रही है। खासतौर पर बाबुओं के हाल बेहाल हैं। एडीएम हों या एसडीओ की अदालत के काम, इनके अलावा तमाम शाखाओं की जिम्मेदारी भी उनके पास है। यहां तक कि फाइल इधर की उधर करने वाले चपरासी भी पर्याप्त मात्रा में नहीं हैं। एक-एक बाबू के पास तीन-तीन अफसरों का काम है। कुछ के पास तो चार-चार अफसरों के विभाग हैं। हालत यह है कि उन्हें दिनभर इधर-उधर दौड़ लगानी पड़ती है। अनुभवियों के रिटायर होने का सिलसिला भी तेज हो गया। हाल ही में एक अधीक्षक व एक स्टेनो ने वीआरएस ले लिया।
ये है अफसरों की संख्या
वर्तमान में इंदौर कलेक्टोरेट में छह अपर कलेक्टर व दस एसडीओ हैं। सभी के पास राजस्व के कामों के अलावा कई विभागों की जिम्मेदारियां हैं। इसके अलावा 40 से अधिक तहसीलदार व नायब तहसीलदार हैं। इनके अलावा निर्वाचन, एसएलआर और खाद्य विभाग में भी बाबू पदस्थ हैं। वह तो भला हो नगर निगम, पीएचई व विश्वविद्यालय का, जहां के कर्मचारी यहां काम संभाल रहे हैं।
1971 में ऐसा था प्रशासनिक सेटअप
सरकार ने वर्ष 1971 में जिला प्रशासन के स्टाफ का सेटअप जमाया था। उस समय कलेक्टर के साथ, एक अपर कलेक्टर और महू, सांवेर और देपालपुर को मिलाकर सात एसडीएम हुआ करते थे। उनके पास न तो जमीनों के ज्यादा विवाद आते थे, न शासन की इतनी योजनाएं होती थीं। धीरे- धीरे जिला की आबादी बढ़ती गई। अब जिला चार गुना अधिक बढ़ा हो गया। प्रशासन के पास सरकार की योजनाएं और काम बढ़ता गया लेकिन स्टाफ उतना ही रहा, बल्कि धीरे-धीरे कम होता गया। 51 वर्षों में दर्जनों कलेक्टर बदल गए। उन्होंने चिंता जरूर की लेकिन किया कुछ नहीं। एक बार प्रस्ताव जरूर गया था लेकिन बाद में कोई प्रयास नहीं हुआ।
एसडीएम के पास नहीं रीडर
पुलिस कमिश्नरी लागू होने के बाद शहरी क्षेत्र में डिप्टी कलेक्टर के पास एसडीएम का काम बहुत कम है लेकिन कब्जा व प्रदूषण सहित कई ऐसे मामले हैं, जो उनके यहां ही चलते हैं। किसी भी एसडीएम के पास अतिरिक्त बाबू नहीं हैं। पहले थाने के सिपाहियों से काम चला लिया जाता था लेकिन अधिकतर बाबुओं को हटा लिया गया। एसडीओ के बाबू को ही वह काम करना पड़ता है।
देर तक करना पड़ रहा
गौरतलब है कि जिला प्रशासन के पास काम बहुत है और करनेवाले कर्मचारी कम। कई कर्मचारियों का निर्धारित समय सुबह 10 से शाम 6 बजे तक का है। एडीएम और एसडीएम कार्यालय के बाबुओं को तो रात 9 बजे तक काम करना पड़ता है। वहीं, विशेष परिस्थितियों में कुछ कर्मचारी रात 10-11 बजे तक काम करते नजर आते हैं।
– निर्वाचन
– जनसुनवाई
– जाति प्रमाण-पत्र
– शिकायत
– लोकायुक्त/ईओडब्ल्यू
– सूचना का अधिकार
– डायवर्शन
– जमीन विवाद के केस
– प्रोटोकॉल
– हथियार का लाइसेंस
– विवाह पंजीयन
– नागरिकता की एनओसी
– नए पेट्रोल पंप की एनओसी
– रैली, जुलूस और अन्य आयोजन अनुमति
– नजूल का महकमा
– तीर्थ दर्शन यात्रा
– भू अर्जन शाखा
– नकल सेक्शन
– स्थापना
(इनके अलावा सभी तहसीलों में भी बाबू तैनात हैं। कुछ जगह तो ऐसी हैं, जहां पर कई लोगों को काम पर लगाना पड़ता है।)