scriptजुगाड़ की नाव पर डोलती जिंदगी, हर रोज दाव पर लगता भविष्य | Ground Report From Dharawara Dham Indore 10101 | Patrika News

जुगाड़ की नाव पर डोलती जिंदगी, हर रोज दाव पर लगता भविष्य

locationइंदौरPublished: Nov 24, 2021 11:26:58 pm

इंदौर से सटे कई गांव वर्षों से कर रहे संषर्ष
बच्चों को स्कूल जाने के लिए नाव ही सहारा, कई बार हो चुके हैं घायल

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अभिषेक
इंदौर. हो सकता है यह तस्वीर आपको सोचने पर विवश कर दे। तमाम दावों पर सवाल खड़ा कर दे, लेकिन हकीकत में इंदौर की शहरी सीमा की चकाचौध से दूर कुछ गांव आज भी जुगाड़ के सहारे जिंदगी की नैया को पार लगा रहे हैं। छोटी-छोटी जरूरतों के लिए जान जोखिम में डाल रहे हैं। बच्चे स्कूल जाने के लिए रोज संघर्ष कर रहे हैं। कई दशकों से हो रही छोटी सी पुल-पुलिया की मांग राजनीति की भेट चढ़ गई और पीढ़ियां बीत जाने के बाद भी समाधान नहीं निकला।


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दरअसल, कई गांव ऐसे हैं जो गंभीर नदी के कारण दो हिस्सों में बंटे हुए हैं। एक हिस्सा तो पूर्ण विकसित नजर आता है, वहीं दूसरा हिस्सा बेरुखी का शिकार दिखता है। ऐसा ही एक गांव है धरावराधाम, जो दो हिस्सों में बंटा हुआ है। देपालपुर विधानसभा में स्थित यह गांव एक छोटा पुल न होने के कारण संघर्ष करता दिखता है। अगर ग्रामीण जुगाड़ की नाव का सहारा न लें तो उन्हें अपनी ही जमीन पर जाने के लिए कलारिया की ओर पांच से छह किलोमीटर की परिक्रमा करनी होती है। बच्चों के मामले में भी कुछ ऐसी ही स्थिति दिखती है। उन्हें स्कूल जाने के लिए नाव के सहारे अपने भविष्य को दाव पर लगाना पड़ता है। कभी-कभी यह जुगाड़ की नाव घायल भी कर देती है। गांव में ही मौके पर मिले शरद चौहान, रमेश चौहान ने कहा कि छोटी सी पुलिया बन जाए तो मुश्किल हल हो जाएगी। धरावराधाम पंचायत के सरपंच किशोर भूत का कहना है, समस्या गंभीर है। बार-बार हादसे होते हैं। प्रशासन, सांसद, विधायक को पंचायत की तरफ से पुलिया या पैदल पुल बनाने का ठहराव प्रस्ताव भी दे चुके हैं। कोई भी सुनवाई नहीं कर रहा।
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बारिश में बढ़ जाती है समस्या
संतोष चौहान ने बताया कि बच्चों को स्कूल जाने के लिए घूम कर कलारिया जाना होता है। यहां आठवीं तक स्कूल है। इसके बाद नाव के सहारे ही पार कर कलारिया जाते हैं। बारिश में तो डर लगता है। अभी तो नदी में पानी उतर गया है। पचास साल से अफसर, नेताओं को कह रहे, लेकिन इस समस्या का हल नहीं निकाल रहे हैं। ग्रामीण ताराचंद अपना कटा हुआ पैर दिखाते हुए कहते हैं, शहर से अच्छी सडक़ बन गई। इससे हमारी समस्या हल नहीं हुई है। रोजाना इंदौर, धार थोड़ी जाना होता है। सांसद सुमित्रा महाजन एक बार आ कर देख गईं, लेकिन हल नहीं मिला। विधायकों को तो कहते-कहते थक गए।
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हिरली में छात्राओं ने थककर तैराकी प्रतियोगिता ही रख दी
शिप्रा नदी के किनारे स्थित हिरली गांव में स्थिति और भी गंभीर है। यहां ग्रामीण कई बार आंदोलन कर चुके हैं, लेकिन अभी तक पुल का निर्माण नहीं हो पाया है। हालांकि कई बार कागजी घोड़े जरूर दौड़े, लेकिन स्थितियां नहीं बदलीं। अब थककर छात्राओं ने यहां तैराकी प्रतियोगिता ही रख दी है। हिरली में पुल बनाने की मांग को लेकर आंदोलन कर रही छात्राओं प्रतिनिधि महक पठान ने कहा मजबूरी में हम नाव के सहारे नदी पार करते हैं। ऐसे में हम कुशल तैराक भी हो चुके हैं। नदी में कितनी भी बाढ़ आ जाए क्षेत्र के लोगों को अपने काम से उस पार जाना ही होता है। उपेक्षा के खिलाफ अब हमने 26 नवंबर को प्रतियोगिता रखी है।
बोले जनप्रतिनिधि
मामला मेरे संज्ञान में नहीं लाया गया। यदि लोगों को परेशानी हो रही है तो चर्चा करके पुलिया बनवाई जाएगी। इस तरह के मामलों में अधिकारियों से जानकारी ले कर समस्या का हल करेंगे।
-शंकर लालवानी, सांसद इंदौर
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