चैंबर्स के अध्यक्ष रमेश खंडेलवाल और सुशील सुरेका ने बताया, अब तक व्यापारी पूरा आइटीसी रिटर्न ले लेता था। अब इसमें बदलाव कर जितना जीएसटी भरा गया है उसी अनुपात में आइटीसी देने का नियम बनाया गया है। यानी रिसीवर को सप्लायर द्वारा भरे गए रिटर्न के आधार पर ही एक लिमिट में राशि मिलेगी। उन्होंने बताया, करदाता आइटीसी लेकर टैक्स का भुगतान करता था। नए प्रावधान के अनुसार प्रत्येक माह के लिए करदाता को उसके फॉर्म 2 (सप्लायर द्वारा दाखिल जीएसटीआर-1 के आधार पर बनता है) में दिख रही इनपुट टैक्स क्रेडिट से 20 प्रतिशत अधिक नहीं ली जा सकेगी। इससे जिन सप्लायर द्वारा रिटर्न फाइल नहीं किए गए हैं, उनकी के्रडिट रिसीवर को नहीं मिल सकेगी। इस प्रक्रिया में बड़ी पूंजी ब्लॉक होने की संभावना रहेगी। उन्होंने कहा, इसकी प्रक्रिया में सुधार होना चाहिए, क्योंकि अनेक मामलों में टैक्स भुगतान के बाद भी क्रेडिट नहीं मिल सकेगी। अतिरिक्त खर्च भी बढ़ेगा। काउंसिल से बार-बार आग्रह के बाद भी प्रयोग कम नहीं किए जा रहे हैं।