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हुकुमचंद मिल को मिला मालिकाना हक, हाईकोर्ट ने खारिज किया मप्र सरकार का दावा, अब मजदूरों को मिल सकेगा पैसा

locationइंदौरPublished: May 22, 2018 04:20:59 pm

Submitted by:

nidhi awasthi

हुकुमचंद मिल को मिल मालिकाना हक, हाईकोर्ट ने खारिज किया मप्र सरकार का दावा, अब मजदूरों को मिल सकेगा पैसा

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हुकुमचंद मिल को मिल मालिकाना हक, हाईकोर्ट ने खारिज किया मप्र सरकार का दावा, अब मजदूरों को मिल सकेगा पैसा

इंदौर. हुकमचंद मिल की साढ़े 42 एकड़ जमीन के मालिकाना हक पर मंगलवार को हाईकोर्ट में फैसला सुना दिया है। अपने हक के लिए पिछले ढाई दशक से कानूनी लड़ाई लड़ रहे मजदूरों के लिए यह फैसला काफी अहम था। पिछले 26 साल से अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हुकुमचंद मिल के हजारों मजदूरों के लिए मंगलवार का दिन बेहद खास रहा। मप्र हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने हुकुमचंद मिल मामले में अपना फैसला सुनाते हुए मिल की जमीन पर से मप्र सरकार का दावा खारिज कर दिया। कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि मिल की जमीन पर इंदौर नगर निगम का स्वामित्व है ना की मप्र सरकार का। कोर्ट के इस फैसले के बाद मजदूरों में हर्ष की लहर दौड़ गई। मजदूरों को उम्मीद है कि इस निर्णय के बाद उनका करोड़ों रुपए भुगतान मिल सकेगा।
42.5 एकड़ जमीन पर मप्र सरकार के दावे को खारिज कर दिया

इंदौर मिल मजदूर संघ के महामंत्री हरनाम सिंह धालीवाल ने बताया कि हुकुमचंद मिल मामले में मंगलवार को कोर्ट ने अपना फैसला दे दिया है। फैसले में कोर्ट ने हुकुमचंद मिल की 42.5 एकड़ जमीन पर मप्र सरकार के दावे को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने इस जमीन पर नगर निगम का स्वामितव माना है। कोर्ट के इस फैसले से मजदूरों को अपने वेतन के बकाया 229 करोड़ रुपए जल्द मिलने की उम्मीद है। गौरतलब है कि सन 1991 में मिल बंद होने के बाद से अब तक मजदूर अपने हक के पैसे के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं।
मजदूरों को मिलेगा उनका पैसा

जमीन का मालिकाना हक स्पष्ट होने के बाद ही उनकी करीब १७० करोड़ रुपए की बकाया राशि मिलने की स्थिति साफ होनी थी। एक मई को कोर्ट ने याचिका पर दो दिन तक लगातार सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा था, जो जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव ने सुनाया। सरकार का कहना है कि यह जमीन उनकी है, जबकि अन्य पक्ष इसे नगर निगम की बता रहे हैं। मजदूरों ने कोर्ट से गुजारिश की है जमीन का मालिकाना हक भले ही किसी को भी दिया जाए, लेकिन सबसे पहले मजदूरों को उनका बकाया पैसा मिल जाए।
ये था पूरा मामला

पुरानी साख संस्था ओल्ड पलासिया स्थित बेशकीमती करोड़ों की जमीन नीलाम करने जा रही है। वर्ष 2002 में कल्याण मिल बंद होने के बाद मजदूरों ने अपनी मेहनत की पूंजी संस्था में जमा करवा दी थी। वहीं संस्था ने 4 करोड़ रुपए दो सदस्य बहनों को लोन के रूप में दे दी थी। करीब 12 वर्ष तक यह राशि नहीं लौटाने पर मजदूरों की मेहनत की गाढ़ी कमाई उलझ गई थी। अब संस्था ने कर्जदारों की संपत्ति को नीलाम कर मिलने वाली राशि को 17 हजार से ज्यादा सदस्यों में बांटेेंगे।
जब्ती पर कोर्ट ने लगाई थी रोक

संस्था अध्यक्ष एडवोकेट दीपक पंवार ने बताया, द रियल नायक साख सहकारी संस्था से दो सदस्य जेरू, नरगिस ने वर्ष 2004 में करीब 4 करोड़ रुपए कर्ज के रूप में दिए थे। इन महिलाओं ने संस्था की राशि नहीं लौटाई।
संस्था ने बाद में सहकारिता कोर्ट में वर्ष 2005 में वसूली के लिए केस दायर किया। इसके लिए हैसियत पत्र पर बताई गई अलग-अलग संपत्तियों को लेकर 8 केस दर्ज किए। बकायादार ने खुद न्यायालय के सामने संपत्ति जून 2009 में संस्था को सरेंडर कर दी, लेकिन महिला सदस्य बीमार होने के चलते कोर्ट ने एक कमरे की जब्ती पर रोक लगा दी। संस्था ने कमरे को छोड़ बाकी संपत्ति पर कब्जा ले लिया। दो वर्ष बाद ही दोनों सदस्य बहनों की मौत हो गई, जिस पर जून 2012 को संस्था ने बचे हुए कमरे को भी कब्जे में ले लिया।
कब्जा करने की नीयत से भवन में तोडफ़ोड़
दोनों बहनों की मौत के बाद संस्था उक्त संपत्ति को नीलाम कर पहले ही अपने सदस्यों को बांटना चाहती थी, जिसके लिए बजावरी प्रकरण भी लगाया गया। इसी बीच कुछ लोगों ने कब्जा करने की नीयत से भवन में तोडफ़ोड़ शुरू कर दी थी। संस्था ने कानूनी आपत्ति लेकर कब्जा लेना चाहा तो पता चला कि जहांगीर मेहता, हीलू पटेल, केटी सुरेंद्रन, रोशन अलियास टेंगरा व मीनू मेहता ने अशोक जैन को उसे बेच दिया है। संस्था की आपत्ति पर न्यायालय ने संपत्ति कुर्की कर सुपुर्द कर दी है। अब संस्था द्वारा उक्त संपत्ति को बेचकर उन सभी मजदूर सदस्यों को उनकी राशि लौटाई जाएगी।
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