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शासकीय भूमि पर सैलाना राजघराने का 40 साल से कब्जा, हाई कोर्ट ने दिया ये सख्त आदेश

locationइंदौरPublished: Oct 09, 2019 04:03:09 pm

कहा- शासकीय जमीनों पर कब्जे के मामले कलेक्टर-प्रशासन हलके में न लें

शासकीय भूमि पर सैलाना राजघराने का 40 साल से कब्जा, हाई कोर्ट ने दिया ये सख्त आदेश

शासकीय भूमि पर सैलाना राजघराने का 40 साल से कब्जा, हाई कोर्ट ने दिया ये सख्त आदेश

विकास मिश्रा @ इंदौर. हाई कोर्ट के प्रशासनिक न्यायमूर्ति एससी शर्मा और न्यायमूर्ति शैलेन्द्र शुक्ला की खंडपीठ ने तल्ख टिप्पणी करते हुए रतलाम कलेक्टर व प्रशासन से कहा, शासकीय जमीनों पर कब्जे के मामले को हलके में न लें। हाई कोर्ट ने रतलाम कलेक्टर को 60 दिन के भीतर सैलाना राजघराने के ठाकुर यादवेंद्र सिंह के द्वारा 40 साल से किए गए शासकीय भूमि पर कब्जे और निर्माण को जांच कर विधिवत आदेश पारित करने के लिए निर्देशित किया है।
सैलाना के सामाजिक कार्यकर्ता दिलीप जोशी और राजेंद्र जोशी के द्वारा विगत कई वर्षों से सैलाना राजघराने ठाकुर यादवेंद्र सिंह के द्वारा उनके महल से लगी बेशकीमती बस स्टैंड के लिए प्रस्तावित शासकीय भूमि पर अवैध कब्जा कर दुकानें बनाने व किराया वसूलने को लेकर प्रशासन की शिकायत की जा रही थी। रेवेन्यू बोर्ड ने संबंधित जमीन का शासकीय माना फिर भी कार्रवाई नहीं हुई तो एडवोकेट मनीष यादव के माध्यम से 2017 में जनहित याचिका दायर की थी।
शासकीय भूमि पर सैलाना राजघराने का 40 साल से कब्जा, हाई कोर्ट ने दिया ये सख्त आदेश
इसमें बताया गया कि कैसे प्रशासन के द्वारा पंचायत से सांठगांठ कर ठाकुर यादवेंद्र को और भी नई दुकाने बनाने की अनुमति अवैध रूप से दे दी गई। कोर्ट ने नोटिस जारी कर जवाब मांगा और सरपंच के खिलाफ जमानती वारंट भी जारी हुआ सरकार ने जवाब पेश करते हुए माना कि ये शासकीय भूमि है लेकिन साथ ही यह भी कहा कि इसे जनहित याचिका में तय नही किया जा सकता। याचिकाकर्ता एसडीएम के समक्ष अपनी बात रखे।
किरायेदारी प्रकरण से बचने के लिए याचिका

यादवेंद्र की ओर से वरिष्ठ एडवोकेट ने तर्क रखे, याचिकाकर्ता ठाकुर के 40 वर्षो से किराएदार है और इनके मध्य किरायेदारी के प्रकरण चले है, जिनसे बचने के लिए ये याचिका दायर की है। मामला जनहित याचिका से तय नही हो सकता। याचिकाकर्ता के एडवोकेट ने तर्क रखे , मामला शासकीय भूमि का है, यह भी साबित है कि पंचायत से मिलीभगत कर दुकान निर्माण की अवैध अनुमति प्राप्त कर ली है। चाहे याचिकाकर्ता किराएदार क्यों न हो केवल इस आधार पर किसी को भी शासकीय भूमि पर कब्जे की अनुमति नही दी जा सकती। तर्कों से सहमत होते हुए कोर्ट ने अपने आदेश में कलेक्टर को तल्ख टिप्पणी के साथ आदेशित किया कि शासकीय भूमि पर कब्जे के मामले को हल्के में सिर्फ इस आधार पर नही लिया जा सकता कि याचिकाकर्ता किराएदार है या उसके पास इसके अन्य विकल्प भी उपलब्ध है। याचिका स्वीकार करते हुए कोर्ट ने कहा, जब ये जवाब में माना जा चुका है विवादित भूमि शासकीय है तो इस पर कलेक्टर स्वयं 60 दिवस के भीतर कब्जाधारी समेत याचिकाकर्ता को अपनी बात रखने का अवसर प्रदान कर विधिवत आदेश पारित करे ।
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