बिना पक्ष सुने कर दिया बोर्ड से बाहर तन्खा ने कोर्ट के समक्ष बोर्ड द्वारा लिए गए फैसलों पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना था, फर्म्स एंड सोसायटी के जिस आदेश के चलते जयसिंह झाबुआ की सदस्यता खत्म की है, उस पर तारीख ही नहीं है। बैठक के ठीक पहले पुलिस और प्रशासन के अमले ने उन्हें बैठक से बाहर कर दिया। आरोपों को लेकर उनका पक्ष ही नहीं जाना गया। न्याय सिद्धांत का पालन नहीं किया गया।
बैठक के एजेंडे में नया बोर्ड गठन नहीं तन्खा ने कहा, जयसिंह झाबुआ और नरेंद्र सिंह झाबुआ को जिस बैठक से बाहर किया गया था, उसके एजेंडे में कहीं भी नए बोर्ड का गठन नहीं था। बावजूद इसके मनमर्जी से नए अध्यक्ष और उपाध्यक्ष बना दिए गए। नियमों के विरूद्ध नए सदस्य (संजय पाहवा) को बोर्ड में शामिल कर लिया गया।
रजिस्ट्रार के अधिकारों पर उठाए सवाल तन्खा ने फर्म्स एंड सोसायटी के रजिस्ट्रार के अधिकारों पर भी सवाल उठाए। उनका कहना है कि रजिस्ट्रार को यह अधिकार नहीं है कि वे तहसीलदार, एसडीएम और पुलिस को आदेश देकर किसी मीटिंग के सदस्यों को बैठक से बाहर कर सकें। कोर्ट ने इस बिंदु को अहम मानते हुए जयसिंह को अंतरिम राहत दी है। उनका कहना था कि सतबीरसिंह छाबड़ा की जिस शिकायत के आधार पर जयसिंह झाबुआ और नरेंद्रसिंह झाबुआ पर कार्रवाई की गई, वह झूठी है। तर्क रखा कि पूर्वाग्रह के तहत फैसले लिए गए।
शासन का तर्क, नियमों के अनुसार कार्रवाई शासन की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता पुष्यमित्र भार्गव ने पैरवी की, जबकि अध्यक्ष विक्रमसिंह पंवार और राज्यवर्धन सिंह सहित अन्य की ओर से सीनियर एडवोकेट एके सेठी, वीके जैन, अंशुमान श्रीवास्तव ने पक्ष रखा। शासन का तर्क था कि पूरी कार्रवाई नियमों के अनुसार हुई है। बोर्ड पदाधिकारियों के वकीलों ने भी कार्रवाई को सही बताया।