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युद्ध के लिए हथियारों के साथ योद्धा तैयार, कल शाम होगी भिड़ंत, देखना है तो यहां चले आइए

locationइंदौरPublished: Oct 27, 2019 04:21:48 pm

गौतमपुरा में कल शाम होगा हिंगोट युद्ध, तुर्रा व कलंगी दल में होगी भिड़ंत

युद्ध के लिए हथियारों के साथ योद्धा तैयार, कल शाम होगी भिड़ंत, देखना है तो यहां चले आइए

युद्ध के लिए हथियारों के साथ योद्धा तैयार, कल शाम होगी भिड़ंत, देखना है तो यहां चले आइए

गौतमपुरा. गौतमपुरा में दिवाली के अगले दिन पड़वा की शाम होने वाले अति प्राचीन पंरपरागत हिंगोट युद्ध की तैयारी हो चुकी है। इस युद्ध में न किसी की हार होती है और न किसी की जीत। युद्ध सिर्फ भाईचारे का होता है। जहां तुर्रा (गौतमपुरा) व कलंगी (रूणजी) नाम के दो दल पूर्वजों द्वारा सौंपी गई इस धरोहर को जीवित रखने के लिए नवरात्रि से ही हिंगोट बनाने की प्रक्रिया में जुट जाते हैं और पड़वा को इस अद्वितीय परंपरा को जीवित रखते हैं।
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क्या है हिंगोट

हिंगोट हिंगोरिया नामक पेड़ के फल से बनाया जाता है। लोग जंगल से फल तोडक़र लाते हैं। चीकू के आकार वाले फल का आवरण कठोर होता है। अंदर गुदा नरम होता है। फल के आवरण को साफ कर इसे खोखला बनाया जाता है। एक छोर पर बारीक व दूसरे पर बड़ा छेद कर दो दिन धूप में सुखाया जाता है। इसके बाद योद्धा द्वारा तैयार किया गया बारूद भरकर बड़े छेद को पीली मिट्टी से बंद कर दूसरे बारीक छेद पर बारूद लगाया जाता है। इसके बाद निशाना सीधा लगे, इसलिए हिंगोट के ऊपर आठ इंची बांस की कीमची बांध दी जाती है। इसके बाद ये ङ्क्षहगोट युद्ध के लिए तैयार हो जाते हैं।
नाचते-गाते निकलते हैं

हिंगोट युद्ध के दिन तुर्रा व कलंगी दल के योद्धा सिर पर साफा, कंधे पर हिंगोट से भरे झोले और हाथों में जलती लकड़ी लेकर दोपहर दो बजे बाद युद्ध मैदान को नाचते-गाते निकल पड़ते हंै। मैदान के समीप भगवान देवनारायण मंदिर में दर्शन के बाद मैदान में आमने-सामने खड़े हो जाते हैं। शाम 5 बजे बाद संकेत पाते ही युद्ध आंरभ कर देते हैं। एक-दूसरे पर निशाना साध कर जलते हिंगोट फेंके जाते हैं। इस रोमांचकारी युद्ध को देखने के लिए हजारों की संख्या में दर्शक जुटते हैं। नगर पंचायत के साथ ही अन्य विभाग पुख्ता व्यवस्था करते हैं।
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बंद कराने की थी घोषणा

युद्ध में उतरने वाले योद्धाओं को हर वर्ष कई परेशानियों से जूझना पड़ता है। जैसे-जैसे इस परंपरा का प्रचार-प्रचार बढ़ रहा है, वैसे-वैसे योद्धाओं की परेशानियां भी बढ़ रही हैं। वर्ष 2010 में तत्कालीन कलेक्टर राघवेन्द्र सिह ने इसे बंद करने की चेतावनी दी थी। जिसको लेकर पूरे नगर के साथ कांग्रेस व भाजपा के नेता व तत्कालीन विधायक सत्यनारायण पटेल ने साफ कर दिया था कि यह परंपरा बंद नहीं होगी।
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