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हिंगोट युद्ध: एक-दूसरे पर आग और बारूद फेंकते हैं लोग, जानिए क्यों होता है ये

locationइंदौरPublished: Oct 28, 2019 07:54:31 pm

Submitted by:

Muneshwar Kumar

हिंगोट वार को लेकर क्या हैं मान्यताएं

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इंदौर/ कभी परंपराएं जानलेवा साबित होती हैं। ऐसी ही एक परंपरा हिंगोट युद्व जो दिवाली के मौके पर मध्यप्रदेश के इंदौर जिले में होता है। इस युद्ध में लोग एक-दूसरे पर आग और बारूद बरसाते हैं। प्रशासन भी किसी भी अनहोनी से निपटने के लिए वहां मुस्तैद रहती है। हिंगोट युद्ध को लेकर कई किवदंतियां हैं। लेकिन किसी भी धार्मिक दस्तावेज में इसका कोई जिक्र नहीं है।
इंदौर के गौतमपुरा में हिंगोट युद्ध हुआ। हिंगोट युद्ध दो गावों के लोगों के बीच होती है। इसे देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग मौजूद रहते हैं। इसके साथ ही सुरक्षा के लिए रैपिड एक्शन बल के जवान तैनात किए जाते हैं। इसकी तैयारी दिवाली के पहले से ही शुरू हो जाती है। हिंगोट युद्ध शुरू है लेकिन हम आपको बताते हैं कि ये होता क्यों हैं। ये हिंगोट बनता कैसे हैं।
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क्यों होता है हिंगोट युद्ध
हिंगोट युद्ध को लेकर कई किस्से प्रचलित हैं। लोग बताते हैं गौतमपुरा के लड़ाके मुगल सेनाओं से गांव को बचाने के लिए उन पर हिंगोट से हमला करते थे। इसके बाद से ही यह परंपरा चली आ रही है। अब यह ग्रामीणों के आस्था से जुड़ गया और सदियों से यहां इसका आयोजन हो रहा है। परंपरा की वजह से अब प्रशासन भी इन्हें मदद करती है।
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कलंगी और तुर्रा के बीच होता है युद्ध
परंपरा के अनुसार गौतमपुरा और रुणजी गांव के योद्धा आपस में युद्ध करते हैं। गौतमपुरा के योद्धाओं को तुर्रा और रुणजी के योद्धाओं को कलंगी नाम दिया दिया है। दोनों योद्धाओं का दल सूर्यास्त के तत्काल बाद मंदिर में दर्शन करते हैं। उसके बाद युद्ध के मैदान में उतर जाते हैं। इस युद्ध में किसी जीत और हार भी नहीं होती है लेकिन रोमांच बहुत होता है।
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एक-दूसरे पर बरसाते हैं हिंगोट
यह युद्ध दोनों दल के योद्धाओं के बीच करीब एक घंटे तक चलता है। इस दौरान दोनों दल के लोग एक-दूसरे पर हिंगोट से हमला करते हैं। इस दौरान लोग जख्मी भी हो जाते हैं। प्रशासन के द्वारा मौके पर एंबुलेंस की व्यवस्था की जाती है, जिसके जरिए घायल लोगों को तुरंत अस्पताल पहुंचाया जाता है।
क्या होता है ये हिंगोट
दरअसल, हिंगोट एक फल होता है, जो हिंगोरिया नाम के पेड़ पर आता है। आंवले के आकार वाले फल से गूदा निकालकर इसे खोखल कर लिया जाता है। इसके बाद इसमें कुछ इस तरह से बारूद भरा जाता है कि आग दिखाने पर यह किसी अग्निबाण की तरह सर्र से निकल पड़ता है। बारूद के साथ-साथ इसमें कंकर और पत्थर भी भरा जाता है। अंधेरा होने पर इसकी रौनक बढ़ जाती है।
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