गौतमपुरा में दिवाली के अगले दिन पड़वा की शाम होने वाले अति प्राचीन पंरपरागत हिंगोट युद्ध शुरू हो गया। शाम 4 बजे करीब क्षेत्र के तुर्रा-गौतमपुरा व कलंगी-रूणजी के निशान लिए दो दल यहां पहुंचे। सजे-धजे ये योद्धा कंधों पर झोले में भरे हिंगोट, एक हाथ में ढाल व दूसरे में जलती बांस की कीमची लिए ढोल-ढमाकों के साथ झूम रहे थे। बडऩगर रोड स्थित देवनारायण मंदिर के दर्शन कर मंदिर के सामने ही दर्शकों की सुरक्षा जालियों से घिरे मैदान में करीब 200 फीट की दूरी पर दोनों दल आमने-सामने आ गए। गौतमपुरा के तुर्रा दल द्वारा जलता हुआ हिंगोट रूणजी के कलंगी दल पर फेंकने के साथ इस युद्ध शुरू हो गया। सवा घंटे तक चले युद्ध में तुर्रा के कई योद्धाओं का सामना कलंगी के योद्धाओं ने किया।
गौरतलब है कि वर्ष 2010 में तत्कालीन कलेक्टर राघवेन्द्र सिह ने इसे बंद करने की चेतावनी दी थी। जिसको लेकर पूरे नगर के साथ कांग्रेस व भाजपा के नेता व तत्कालीन विधायक सत्यनारायण पटेल ने साफ कर दिया था कि यह परंपरा बंद नहीं होगी।
क्या है हिंगोट हिंगोट हिंगोरिया नामक पेड़ के फल से बनाया जाता है। लोग जंगल से फल तोडक़र लाते हैं। चीकू के आकार वाले फल का आवरण कठोर होता है। अंदर गुदा नरम होता है। फल के आवरण को साफ कर इसे खोखला बनाया जाता है। एक छोर पर बारीक व दूसरे पर बड़ा छेद कर दो दिन धूप में सुखाया जाता है। इसके बाद योद्धा द्वारा तैयार किया गया बारूद भरकर बड़े छेद को पीली मिट्टी से बंद कर दूसरे बारीक छेद पर बारूद लगाया जाता है। इसके बाद निशाना सीधा लगे, इसलिए हिंगोट के ऊपर आठ इंची बांस की कीमची बांध दी जाती है। इसके बाद ये ङ्क्षहगोट युद्ध के लिए तैयार हो जाते हैं।