गांधी ने मार्च 1918 में इंदौर से ही हिंदी की तरफदारी शुरू कर दी थी। 8वें हिंदी साहित्य सम्मेलन में इस पर चर्चा हुई। गांधी दोबारा अप्रैल 1935 में इंदौर पहुंचे, तब भी मौका हिंदी साहित्य सम्मेलन में अध्यक्षता का था। इसमें गांधी ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का समर्थन करते हुए एेतिहासिक वक्तव्य दिया… ‘अगर हिंदुस्तान को हमें सचमुच एक राष्ट्र बनाना है तो चाहे कोई माने या न माने राष्ट्रभाषा हिंदी ही बन सकती है। हिंदी को जो स्थान प्राप्त है वह किसी दूसरी भाषा को कभी नहीं मिल सकता। हिंदू-मुसलमान दोनों को मिलाकर करीब २२ करोड़ मनुष्यों की भाषा थोड़े बहुत फेर से हिंदी-हिंदुस्तान ही हो सकती है।’
शर्त रखकर स्वीकारी थी अध्यक्षता
वाजपेयी एक किस्सा सुनाते हैं… गांधी की प्रेरणा से 1910 में मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति की शुरुआत हुई थी। 1918 में जब उन्हें 8वें हिंदी साहित्य सम्मेलन, इंदौर का अध्यक्ष बनाने प्रस्ताव रखा गया तो श्री मध्यभारत साहित्य समिति के अध्यक्ष सरजूप्रसाद तिवारी के सामने शर्त रखी। इसमें उन्होंने दो सवाल पूछे। पहला, हिंदी राष्ट्रभाषा होनी चाहिए या नहीं? दूसरा, हमारी मातृभाषाओं में सर्वशिक्षा देना सही है या नहीं? ये सवाल लोगों से पूछे गए। उनकी प्रेरणा से 1918 में लिया गया हिंदी भवन निर्माण का संकल्प पूरा हो गया, जिसका शुभारंभ 1935 में गांधी ने ही किया। उन्होंने कहा था कि देश को आजादी भाषा ही दिला सकती है। इसके बाद ही वर्धा, हैदराबाद और चेन्नई में हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार केंद्र खोले गए। गांधी के निर्देश पर देवदास गांधी, हरिहर शर्मा और ऋषिकेश शर्मा ने दक्षिण में जाकर हिंदी का अलख जगाई।
वाजपेयी एक किस्सा सुनाते हैं… गांधी की प्रेरणा से 1910 में मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति की शुरुआत हुई थी। 1918 में जब उन्हें 8वें हिंदी साहित्य सम्मेलन, इंदौर का अध्यक्ष बनाने प्रस्ताव रखा गया तो श्री मध्यभारत साहित्य समिति के अध्यक्ष सरजूप्रसाद तिवारी के सामने शर्त रखी। इसमें उन्होंने दो सवाल पूछे। पहला, हिंदी राष्ट्रभाषा होनी चाहिए या नहीं? दूसरा, हमारी मातृभाषाओं में सर्वशिक्षा देना सही है या नहीं? ये सवाल लोगों से पूछे गए। उनकी प्रेरणा से 1918 में लिया गया हिंदी भवन निर्माण का संकल्प पूरा हो गया, जिसका शुभारंभ 1935 में गांधी ने ही किया। उन्होंने कहा था कि देश को आजादी भाषा ही दिला सकती है। इसके बाद ही वर्धा, हैदराबाद और चेन्नई में हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार केंद्र खोले गए। गांधी के निर्देश पर देवदास गांधी, हरिहर शर्मा और ऋषिकेश शर्मा ने दक्षिण में जाकर हिंदी का अलख जगाई।
नेहरू पार्क में रुके थे
श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति के साहित्य मंत्री हरेराम वाजपेयी कहते हैं कि गांधी दूसरी बार अप्रैल 1935 में इंदौर आए तो उनका स्टेशन पर स्वागत किया गया। उनका स्मारक आज भी स्टेशन के बाहर मौजूद है। उन्हें नेहरू पार्क (तब के विस्को पार्क) में ठहराया गया था। इसे बापू की कुटिया के नाम से जाना जाता है। वहां से साहित्य समिति सम्मेलन स्थल तक यातायात बैलगाड़ी से करते थे, जबकि महाराजा शिवाजीराव होलकर और सर सेठ हुकुमचंद ने उनसे बग्घी में चलने की गुजारिश की थी।
श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति के साहित्य मंत्री हरेराम वाजपेयी कहते हैं कि गांधी दूसरी बार अप्रैल 1935 में इंदौर आए तो उनका स्टेशन पर स्वागत किया गया। उनका स्मारक आज भी स्टेशन के बाहर मौजूद है। उन्हें नेहरू पार्क (तब के विस्को पार्क) में ठहराया गया था। इसे बापू की कुटिया के नाम से जाना जाता है। वहां से साहित्य समिति सम्मेलन स्थल तक यातायात बैलगाड़ी से करते थे, जबकि महाराजा शिवाजीराव होलकर और सर सेठ हुकुमचंद ने उनसे बग्घी में चलने की गुजारिश की थी।