ये दृश्य है होलकर राजवंश की होली के पहले दिन का। होलकर वंश के जानकार और वरिष्ठ इतिहासकार डॉ. गणेश मतकर के संग्रह में पूरा वर्णन है। उन्होंने लिखा है कि फागुन का यह त्योहार राजदरबार में 15 दिन चलता था। पूरे दरबार को भव्य मंडप से रूप में सजाया जाता। इन 15 दिनों में सुबह 7 से दोपहर 12 बजे तक गाने, दोपहर 2 से शाम 6 बजे तक वादन और शाम 6 से रात 11.30 बजे तक नृत्य व गायन होता। इसके बाद फौजियों को भांग व मिठाई राजा की तरफ से बांटी जाती और नकद इनाम भी दिया जाता।
सिर्फ शाही परिवार ही इस्तेमाल कर सकता था गुलाल गोटा कलर बलून्स को एक-दूसरे पर फेंकने का रिवाज आज का नहीं है, बल्कि इसे 200 साल पहले से इस्तेमाल किया जा रहा है। फर्क सिर्फ इतना है कि उस समय इन्हें केवल राजपरिवार के सदस्य ही इस्तेमाल कर सकते थे। 91वर्षीय डॉ. मधुसूदन होलकर ने बताया कि गुलाल गोटा राजघरानों की पहचान बनी रही। इसमें केसर और टेसू के फूल से बने प्राकृतिक रंग भरकर एक-दूसरे पर फेंकते थे। टच होते ही शरीर पर रंग फैल जाता। हाथी पर बैठकर राजे-रजवाड़े के सदस्य गुलाल गोटा फेंकते थे।