योजना 53 को लेकर हाल ही में कालिंदी हाउसिंग सोसाइटी को लेकर आईडीए से कहा गया था कि या तो योजना की स्थिति स्पष्ट करें या यह मान लिया जाएगा कि उनकी जमीन आईडीए की योजना में नहीं है। आईडीए भूअर्जन अधिकारी एनएन पाण्डे की तरफ से जवाब दिया गया कि संस्था की सारी जमीनें योजना का हिस्सा हैं। अब संस्था के सदस्य आईडीए से सवाल पूछ रहे हैं कि यदि जमीनें योजना में शामिल हैं तो योजना की भौतिक स्थिति बताई जाए। क्योंकि हाईकोर्ट के दो आदेश हैं, जिनमें योजना को काफी पहले ही खत्म किया जा चुका है।
इसके बाद आईडीए यहां कोई दूसरी योजना नहीं लाई और आज भी कागजों पर उसी योजना 53 का हवाला दे रहा है, जो खत्म हो चुकी है। आईडीए अफसर तकनीकी पेंच तलाश रहे हैं कि योजना की भौतिक स्थिति को लेकर क्या जवाब दें, क्योंकि यदि वे योजना जिंदा होने की बात कर रहे हैं तो यह सीधे कोर्ट के आदेश का उल्लंघन है।
हाईकोर्ट ने खत्म की योजना
हाईकोर्ट में संस्था की तरफ से दायर याचिका में 1996-96 में जो आदेश आया था, उसमें योजना को खत्म कर आईडीए को नई योजना लाने की सहूलियत दी गई थी। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि आईडीए ने 11 साल की अत्याधिक देरी की। योजना बनानेे और प्रकाशन करने के दौरान इतने समय तक कुछ नहीं किया। यह शक्ति का दुरुपयोग है।
डीबी ने भी कहा नई योजना लाने को
हाईकोर्ट की डबल बेंच में आईडीए की तरफ से की अपील में डीबी ने सिंगल बेंच के आदेश को सही मानते हुए यही कहा कि आईडीए ने 20 साल की अत्याधिक देरी की है। शुरुआत में 11 साल और इसके बाद 9 साल, यह शक्ति का दुरुपयोग है। मूल योजना रही ही नहीं, क्योंकि खुद आईडीए की तरफ से कहा गया कि 40 फीसदी हिस्से पर काम हुआ। शेष जमीन पर अतिक्रमण है और ये हटने के बाद ही स्कीम का पूरा विकास होगा। अत: यदि आईडीए वाकई योजना के लिए गंभीर है तो धारा 50 के प्रावधानों का पालन करते हुए नई योजना ला सकता है। आईडीए की अपील खारिज कर दी गई।
चेयरमैन ने भी कहा था छोड़ो जमीन
हाईकोर्ट के आदेश को भले ही आईडीए के अफसर नहीं मान रहे हैं, लेकिन प्राधिकरण अध्यक्ष रहते हुए तत्कालीन संभागायुक्त संजय दुबे ने हाईकोर्ट के आदेश के परिप्रेक्ष्य में ही 2013 में संस्था के साथ हुआ अनुबंध समाप्त कर वैधानिक कार्रवाई करने का आदेश दिया था, लेकिन आईडीए अफसरों ने चेयरमैन के इस आदेश का भी पालन नहीं किया।