शिविर में किसानों की समस्याओं का निराकरण करने में कम रुचि थी, जबकि बची जमीनें आइडीए को कैसे मिल सकती है, इस पर ज्यादा फोकस था। प्राधिकरण ने अधिकारिक रूप से दावा भी यही किया कि किसानों ने विकास के लिए सहमति दे दी और उनके आरक्षण पत्र मौके पर ही जारी किए गए, लेकिन हकीकत ये है कि किसान भड़के हुए थे और आरक्षण पत्र की बात आने पर मुद्दा यही उठा कि आवंटन कब मिलेगा, कब्जा कब दोगे। इसका संतोषजनक जवाब अधिकारी नहीं दे पाए, जबकि मौके पर भूअर्जन अधिकारी एनएन पांडे, सहायक भूअर्जन अधिकारी राजकुमार हलदर और योजना के प्रभारी इंजीनियर अनिल चुघ व रमण महाजन भी मौजूद थे। किसानों में गुस्सा दिखा और उन्होंने अधिकारियों को खूब खरी-खरी सुनाई वहीं अधिकारी बगले झांकते नजर आए।
इस तरह फूटा किसान का गुस्सा
इस तरह फूटा किसान का गुस्सा
– पांच साल लाकर दे सकते हो, दे दो। पहले वो साहब आए, उनके जूते तोको, फिर वो साहब आए उनके जूते तोको, अब आप आए हैं, आपके जूते तोको। क्या जीवनभर गुलाम ही रखोगे किसान को।
– खेत में बना दी रोड, क्या खाएगा किसान। व्यापारी के प्लॉट इधर, किसान के उधर, मौके पर हम नहीं देंगे। हम आए थे क्या तुम्हारे पास या हमारे बाप-दादाओ ने कर्जा ले रखा था।
– धीरे-धीरे करते कितने साल निकाल दिए। हमारे छोटे-छोटे बच्चे अब जवान हो गए, अब भी रीते हाथ ही हैं।
– एक स्कीम से पेट नहीं भरा, दूसरी ने नहीं भरा और तीसरी से भी नहीं भर रहा है। पुरानी दो स्कीम में काम ही नहीं हुआ, तीसरी ले आए।
– एक पीढ़ी तो मर गई हमारी, तुमसे बात करते-करते, तुम्हारे जूते तोकते-तोकते। सीएम हेल्पलाइन जाओ तो कहते हैं कि आइडीए में ही शिकायत होगी। यहां कभी कुछ हुआ है, जो अब होगा?
– खेत में बना दी रोड, क्या खाएगा किसान। व्यापारी के प्लॉट इधर, किसान के उधर, मौके पर हम नहीं देंगे। हम आए थे क्या तुम्हारे पास या हमारे बाप-दादाओ ने कर्जा ले रखा था।
– धीरे-धीरे करते कितने साल निकाल दिए। हमारे छोटे-छोटे बच्चे अब जवान हो गए, अब भी रीते हाथ ही हैं।
– एक स्कीम से पेट नहीं भरा, दूसरी ने नहीं भरा और तीसरी से भी नहीं भर रहा है। पुरानी दो स्कीम में काम ही नहीं हुआ, तीसरी ले आए।
– एक पीढ़ी तो मर गई हमारी, तुमसे बात करते-करते, तुम्हारे जूते तोकते-तोकते। सीएम हेल्पलाइन जाओ तो कहते हैं कि आइडीए में ही शिकायत होगी। यहां कभी कुछ हुआ है, जो अब होगा?