ड्राइवर की प्रशंसा करते हुए दूसरों को भी प्रेरणा लेने की दी सलाह
आइआइएम डायरेक्टर ने किया ट्वीट, मेरे ड्राइवर ने नौ महीने में एक बार भी नहीं बजाया हॉर्न
अभिषेक वर्मा @ इंदौर. शहर के भीड़भरे ट्रैफिक में रेंगती गाडिय़ों के बीच हॉर्न की आवाजें ध्वनि प्रदूषण के साथ राहगीरों का गुस्सा भी बढ़ाती है। जाम में फंसने पर चारों ओर से हॉर्न बजना स्वाभाविक है। लेकिन, ड्राइविंग सीट पर बैठने के बाद शंकर कैथवास किसी भी हालत में हॉर्न का इस्तेमाल नहीं करते। आइआइएम डायरेक्टर प्रो. हिमांशु राय ने अपने ड्राइवर शंकर की इस खासियत को ट्वीट करते हुए इससे दूसरों को भी प्रेरणा लेने की सलाह दी है।
नौ महीने पहले तक शंकर भी आम ड्राइवरों की तरह भीड़ में हॉर्न का इस्तेमाल करते थे। आइआइएम का डायरेक्टर नियुक्त होने पर प्रो. राय ज्वॉइन करने के बाद शहर से बाहर जा रहे थे। उन्हें एयरपोर्ट छोडऩे के लिए शंकर ने गाड़ी लगाई। शंकर ने बताया, सर ने गाड़ी में बैठते ही मेरा नाम पूछा और कहा, हॉर्न का इस्तेमाल न के बराबर करना। इमरजेंसी होने पर ही हॉर्न बजाना चाहिए। मैंने उनसे इसकी वजह नहीं पूछी और हां कह दिया। शुरुआत में हॉर्न नहीं बजाना अटपटा लगता था। ड्राइविंग में भी थोड़ी परेशानी आई, मगर धीरे-धीरे आदत बन गई। सह कहूं तो हॉर्न के बगैर ड्राइव करना मुझे भी अच्छा लगने लगा है। मैंने कसम ही खा ली है कि हॉर्न का इस्तेमाल नहीं करूंगा। अब तो बाइक चलाते हुए भी हॉर्न नहीं बजाता हूं। काम के सिलसिले में कभी-कभी भोपाल जाते है, तो हाइवे पर भी हॉर्न की जरूरत नहीं पड़ती।
दूसरों को भी समझाने की कोशिश ट्रैफिक में फंसने पर लोग जमकर हॉर्न बजाते है, लेकिन इससे कोई हल नहीं निकलता। रास्ता बनने पर ही गाडिय़ां आगे बढ़ सकती हैं। मैं दूसरों को भी समझाने की कोशिश करता हूं कि हॉर्न का इस्तेमाल कम से कम करें। मुझे हॉर्न की जरूरत इसलिए भी नहीं पड़ती, क्योंकि कभी भी रफ ड्राइविंग नहीं करता। ड्राइविंग के लिए टाइम मैनेजमेंट भी जरूरी है। सर समय पर पहुंचने के लिए हर काम घड़ी देखकर करते है। जहां जाना होता है, वहां के रास्ते व ट्रैफिक की जानकारी पहले पता कर लेता हूं।