must read : लोगों का विरोध देख मंत्री बोले 80 करोड़ रुपए हो गए मंजूर और फिर मुकर गए, अब हो रही किरकिरी रिंग रोड और एमआर-9 चौराहा पर हनुमान मंदिर की इस जमीन पर पिछले करीब एक-दो महीने से बिल्डिंग का काम चल रहा है। मंदिर के सामने टिन शेड में एक निजी रेस्टोरेंट था, वहां अब पक्का निर्माण होने लगा। यह एमआर-9 सड़क पर है और खुलेआम हो रहे निर्माण पर न तो प्रशासन ने आपत्ति ली और न आईडीए ने। रेस्टोरेंट संचालक ने भी इतनी तेजी से काम करवाया कि छत भरवा दी और दूसरी मंजिल बनाना शुरू कर दिया। जिस हिस्से पर ताजा निर्माण हो रहा है, उस हिस्से में अब तक रेस्टोरेंट था और उसी का बोर्ड अब भी लगा है। हालांकि पहले भी टिन शेड डालकर कब्जा ही था और यह जमीन हनुमान मंदिर की है, जिसके प्रशासक खुद कलेक्टर हैं।
must read : दांत के दर्द का इलाज कराने गई महिला, खो बैठी आंखों की रोशनी, जानिए क्या है मामला आईडीए की योजना-53 में थी जमीन ग्राम खजराना की खसरा नं. 532 है। इसका कुल रकबा 2.493 हेक्टेयर (करीब पौने तीन लाख वर्ग फीट) है। इस जमीन का एक हिस्सा रिंग रोड में गया, आधा हिस्सा योजना 94 में और आधा (करीब 1.333 हेक्टेयर) योजना-53 में शामिल था। रिंग रोड में शामिल हिस्से में तो आईडीए के भूखंड हैं, मगर योजना 53 खत्म होने के बाद पीछे के हिस्से पर जमकर अतिक्रमण हुए।
आईडीए झाड़ रहा मामले से पल्ला खसरा नं. 532 भू-अभिलेख में आज भी कलेक्टर के नाम से ही दर्ज है। पूरी जमीन सीलिंग से प्रभावित है और मारुति मंदिर व्यवस्थापक कलेक्टर इंदौर के नाम से देवस्थान के रूप में दर्ज है। एक तरफ योजना खत्म होने का कहकर आईडीए इससे पल्ला झाड़ रहा है और दूसरी तरफ इसी योजना की आड़ में कई जमीनें भी अटका रखी हैं। दरअसल आईडीए ने जमीन का कब्जा लिया था, लेकिन योजना खत्म हुई तो जमीन प्रशासन को लौटा दी। यह तब से ही कलेक्टर के नाम पर है।
यह है जमीन की कहानी ठ्ठ रोबोट चौराहा से लगी एमआर-9 पर मारुति मंदिर के नाम दर्ज जमीन रिंग रोड और योजना 94 व 53 में आई थी। योजना 53 के लिए जमीन के 1.333 और 0.279 हेक्टेयर के दो टुकड़ों को 1990 में अर्जित किया गया था।
ठ्ठ प्रशासन ने इस जमीन का कब्जा मारुति मंदिर मैनेजर जमनाप्रसाद से लेकर आईडीए को सितंबर 1990 में सौंपा। पंचनामा बनाकर पटवारी और राजस्व निरीक्षक ने जमीन का कब्जा आईडीए के सहायक यंत्री को दिया।
ठ्ठ पंचनामे में लिखा गया था कि जमीन खाली है। 1990 तक जमीन खाली भी थी। योजना-53 खत्म होने के बाद जमीन पर कब्जा होने लगा। बाद में आईडीए ने जमीन को प्रशासन के नाम दर्ज करवा दिया।
ठ्ठ पंचनामे में लिखा गया था कि जमीन खाली है। 1990 तक जमीन खाली भी थी। योजना-53 खत्म होने के बाद जमीन पर कब्जा होने लगा। बाद में आईडीए ने जमीन को प्रशासन के नाम दर्ज करवा दिया।
ठ्ठ यह जमीन अलग-अलग टुकड़ों में बंट गई और कई लोग काबिज हो गए। नोटरी पर जमीन की खरीद-फरोख्त तक होने लगी। प्रशासन को जमीन देने के बाद भी कुछ हिस्से की तो एनओसी तक आईडीए ने जारी कर दी।