जिम्मेदार विभाग और अफसर दावा करते हैं कि अवैध खनन नहीं हो रहा, लेकिन शनिवार को राजधानी में ही अवैध रूप से खदानें चलती हुई मिलीं। प्रशासन ने नीलबड़-रातीबढ़ में अवैध रूप से चल रहीं छह खदानें बंद कराईं। वहां चल रहे क्रशर भी जेसीबी मशीन से हटाए गए। बड़ी बात यह है कि जिन खदानों को बंद कराया गया है, वे राजस्व पत्रकों में एक अप्रैल २०१९ को ही बंद हो चुकी हैं। इसके बावजूद यहां अवैध रूप से लगातार ब्लास्टिंग की जा रही थी।
इसका खुलासा तब हुआ जब नीलबड़-रातीबड़ क्षेत्र में कई दिनों से जमीन के अंदर हो रहे धमाकों की शिकायत लोगों ने प्रशासन से की और कलेक्टर खुद मौके पर पहुंचे। यह मामला और भी गंभीर लापरवाही का इसलिए है कि स्थानीय रहवासियों ने कई बार अधिकारियों से अवैध खनन की शिकायत की थी, पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। ब्लास्टिंग से लोगों के घरों में कंपन होता है। ऊपर से बारिश के पानी के चलते जमीन के अंदर हो रही हलचल से लोग दहशत में हैं। ऐसे में अगर ब्लास्टिंग के कारण कोई बड़ी अनहोनी हो जाती है तो कौन जिम्मेदार होगा? अवैध खनन का यह खेल बिना मिलीभगत के संभव नहीं है।
इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि जो खदानें एक अप्रैल से बंद हो चुकी हैं, उनमें ब्लास्टिंग कैसे हो रही थी? उन अफसरों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए जिन्होंने रहवासियों की शिकायत के बावजूद अपने आंख-कान बंद रखे। और इस प्रक्रिया को केवल भोपाल तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए, बल्कि पूरे प्रदेश में स्थिति को दिखवाया जाना चाहिए। इसलिए कि जब मुख्यमंत्री, मंत्री और मुख्य सचिव की नाक के नीचेे इस तरह की कारस्तानी लंबे समय से जारी रह सकती है, तो प्रदेश के अन्य इलाकों में भी ऐसा ही हो रहा होगा, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। सरकार को स्थिति दिखवा कर इसे तुरंत दुरुस्त करना चाहिए। इसके साथ ही एक सुगठित तंत्र भी विकसित करना चाहिए जो सतत सक्रिय रहकर इस तरह की कारस्तानियों की पुनरावृत्ति की आशंका को दूर कर प्रदेश में राजस्व ह्वास होने से रोक सके।