script1857 के क्रांतिकारियों का ठिकाना रही राघौगढ़ के राजा की गढ़ी | in 1857 revaluation pupil work from raghougarh | Patrika News

1857 के क्रांतिकारियों का ठिकाना रही राघौगढ़ के राजा की गढ़ी

locationइंदौरPublished: Aug 11, 2022 06:46:25 pm

आजादी का अमृत महोत्सव
– इंदौर से करीब 30 किमी दूर राघौगढ़ गढ़ी में आज भी छुपा है, क्रांतिकारियों का खजाना
– खुड़ैल के पटेलों से राठौर परिवार का राखी का रिश्ता

1857 के क्रांतिकारियों का ठिकाना रही राघौगढ़ के राजा की गढ़ी

1857 के क्रांतिकारियों का ठिकाना रही राघौगढ़ के राजा की गढ़ी

इंदौर. मालवा-निमाड़ के शहर इंदौर का नाता सिर्फ आजादी के आंदोलन तक सीमित नहीं है, इंदौर व आसपास की रियासतें 1857 के क्रांति का भी केंद्र रही है। इंदौर से करीब 30 किमी की दूरी पर स्थित राघौगढ़ के राजा दौलतसिंह राठौर की गढ़ी कांतिकारियों की गतिविधियों का स्थान रही है। यहां पूरे मालवा निमाड़ के क्रांतिकारी एकत्रित होते थे। उनका खजाना आज भी छुपा हुआ है।
इंदौर देवास ग्वालियर की सीमा रेखा पर विंघ्याचल पर्वत की गोद में बसा राघौगढ़ एक रियासत था। यहां के राजा दौलतसिंह राठौर की गढ़ी आज भी मौजूद है। राजा दौलतसिंह के परिजन यहां रहते है। सरकार से इसे स्मारक स्वरूप में बनाने के प्रयास चल रहे हैं। बताते हैं, गढ़ी में आज भी अंग्रेजों से लड़ाई के लिए जमा हथियार और जनता से ली गई पाई-पाई का खजाना यहा छुपा हुआ है। झांसी की रानी लक्ष्मी बाई के करीबी और प्रमुख क्रांतिकारी तात्या टोपे भी यहां कई बार आ कर रूके। क्योंकि राठौर के लक्ष्मीबाई से अच्छे संबंध थे। राजा दौलत सिंह की सातवी पीढ़ी इंद्रजीतसिंह के बेटे टीकेन्द्रप्रताप सिंह, देवेन्द्र प्रताप व मार्तणसिंह इस गढ़ी की देखभाल करते हैं। वे बताते हैं, तात्या के मालवा में आगमन का उल्लेख सीमामऊ के संग्रहालय में रखी किताब मालवा के क्रांतिकारी में मिलता है।
टीकेन्द्रप्रताप सिंह बताते हैं, यह 22 गांव की छोटी सी स्वतंत्र रियासत थी। अंग्रेज इस पर कब्जा कर मालवा पर नियंत्रण करना चाहते थे। राजा दौलत सिंह राठौर ने उन्हें गढ़ी तक आने से रोकने के लिए धनतलाब घाट पर जंग छेड़ दी थी। 300 गाडियों में गोला-बारूद भर नर्मदा किनारे पहुंचे अंग्रेजों के बीच बागली सरकार के सिपाही बन कर घुस गए थे। भेद खुलने से पकड़े गए और शहीद हो गए। उनकी मौत के प्रमाण नहीं मिलें। किवदंतियां है, कोई कहता है, वे जहर हमेशा साथ रखते थे। भेद खुलने पर अंग्रेजों के हाथ नहीं लगे इसलिए जहर खा लिया। यह भी कहा जाता है, साधु वेश में रह कर क्रांतिकारियों की मदद करते रहे।
पटेलों ने राठौर की पत्नि को किया भूमिगत

राठौर बताते हैं, दौलतसिंह का तो पता नहीं चला। अंग्रेज गढ़ी की तरफ बढऩे लगे। तभी उनकी धर्मपत्नि को संकट में देख खुड़ैल के समीप आकिया गांव के पटेलों ने सुरंग के रास्ते अपने घर बुला कर भूमिगत कर दिया था। तभी से पटेलों के साथ हमारा राखी का रिश्ता है। गदर थमने के बाद रानी विक्टोरिया ने पटेलों से राजा के संबंधियों को पेश करने के लिए भी कहा, लेकिन नहीं किया।
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