सिंगरौली कहां है बताना नहीं पड़ता जब भी मैं कहीं बाहर जाती तो मेरे होम टाउन का नाम आते ही सवाल होते थे कि ये कहां है। आज मुझे खुशी है कि मुझसे मेरे टाउन को पहचाना जाता है और किसी को बताने की जरूरत नहीं होती कि मैं कहां से हूं। आज पूरे देश में सिंगरौली को पहचान मिल चुकी है। नुजहत बताती हैं कि सिंगरौली जैसे छोटे टाउन में लड़कियां क्रिकेट नहीं खेलती थी। ऐसे में सबसे बड़ी परेशानी होती थी प्रैक्टिस करने की। मैंने ग्राउंड में हमेशा लड़कों के साथ प्रैक्टिस की। मैं टॉपर थी तो लोग कहते थे कि लड़की पढ़ाई में अच्छी है तो खेल में क्यों टाइम बर्बाद क र रहे हो। मेरे पापा ने सोसायटी की नहीं सुनी और मुझे समझा। वे बताती हैं कि फाइनल की हार से सबकी आंखें नम थी। मेरा ड्रीम है कि हम वल्र्ड कप जीत कर लाएं ताकि नम आंखों को मुस्कुराहट में बदला जा सके।
नुजहत ने बताया सभी खिलाड़ी चाहती थीं कि मिताली और झूलन को ट्रॉफी उठाते देखें। हमारी पीढ़ी की खिलाड़ी किस्मत वाली हैं कि सभी सुविधाएं हैं, लेकिन जब मैेंने शुरू किया था तब कुछ नहीं था।