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एक हजार रुपए में बनवाता मार्कशीट, दस हजार में देता, इस तरह चलता गोरखधंधा

locationइंदौरPublished: Feb 14, 2020 08:52:17 pm

हीरा नगर इलाके का मामला, तीन स्कूलो की कई मार्कशीट मिली आरोपियों के पास

एक हजार रुपए में बनवाता मार्कशीट, दस हजार में देता, इस तरह चलता गोरखधंधा

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इंदौर. फर्जी मार्कशीट के जरिए लाइसेंस व उम्र सर्टिफिकेट बनाने में तीन स्कूलो की जांच पुलिस कर रही है। इन स्कूलो के नाम की ही मार्कशीट आरोपियों के पास मिली। एक हजार रुपए में मार्कशीट लेने के बाद आरटीओ एजेंट उसे दस हजार रुपए में देता था।
टीआई हीरा नगर राजीव भदौरिया ने बताया सिक्का स्कूल कर्मचारी अनिल पाल के अपहरण में किशोर खंडारे, मेघा खंडारे, रोनी शेख, लीमा हलधर को गिरफ्तार किया था। इनके खिलाफ पुलिस ने धोखाधड़ी व नकली नोट बनाने का केस दर्ज किया। इन चारों को पुलिस ने कोर्ट में पेश कर 16 फरवरी तक रिमांड पर लिया गया। आरोपियों की जानकारी के बाद पुलिस ने फर्जी मार्कशीट बनाने वाले अशोक अग्रवाल, शिवकुमार यादव व मार्कशीट इस्तेमाल करने वाले आरटीओ एजेंट बाबूलाल गौड को पकड़ा गया। अशोक के पास से तीन स्कूलो के नाम की मार्कशीट मिली। इन स्कूलो की भूमिका भी पुलिस देख रही है। ड्राइविंग लाइसेंस बनाने के लिए पांचवी व आठवी की मार्कशीट जरुरी होती है। जिन लोगो के पास ये मार्कशीट नहीं होती उनके लिए बाबूलाल नकली मार्कशीट तैयार करवाता। एक हजार रुपए में अशोक मार्कशीट बनाकर देता। जिसके बदले में बाबूलाल लोगो से दस हजार रुपए लेता। ड्राइविंग लाइसेंस की फीस भी 1500 रुपए अलग से लेता।
हीरा नगर पुलिस ने आरटीओ को पत्र लिखकर पूछा है कि बाबूलाल ने किन लोगो के लाइसेंस बनवाए है। इनसे पूछताछ के साथ निरस्त भी करवाया जाएगा। पुलिस ने अशोक, शिवकुमार व बाबूलाल को शुक्रवार को पेश किया। इन्हें रिमांड पर लेकर पूछताछ की जाएगी। वही पुलिस अब पता कर रही है कि उम्र सर्टिफिकेट का इस्तेमाल कहां किया गया। पता चला है कि खेल प्रतियोगिता में उम्र कम बताने के लिए इन मार्कशीट का इस्तेमाल किया गया। जांच के दौरान अन्य लोगो की भूमिका सामने आने पर उन्हें भी आरोपी बनाया जाएगा।
इस तरह बन गया पासपोर्ट

दस साल से मेघा मुंबई में रह रही थी। वहां पर उसने आधार कार्ड बनवाया था। इंदौर आने के बाद किराए से कमरा लेने के लिए बनाए अनुबंध से उसने आधार कार्ड में पता बदलवा लिया। उसने वर्ष 2003 की कक्षा आठवी की मार्कशीट तैयार करवाई। इससे साबित हुआ कि 10 साल से ज्यादा समय से वह इंदौर में रह रही है। फिर पासपोर्ट में उसने खुद को इंदौर का मूल निवासी बताया। यही कारण रहा कि जांच के दौरान दस्तावेज की गड़बड़ी पकड़ नहीं आई।

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