डॉ. बक्शी ने बताया, कभी-कभी कुछ कारणों से गर्भावस्था में परेशानियां आ जाती हैं। जिन पर दवाइयां असर नहीं करतीं, उनके लिए टेस्ट ट्यूब बेबी पद्धति काम कर रही है। टेस्ट ट्यूब में प्री इंप्लांटेशन जेनेटिक स्क्रीनिंग से भ्रूण का विकास होता है। कभी-कभी शुक्राणु में स्पर्म नहीं बनते और एफएसएच लेवल ज्यादा होता है। ऐसे केस में एरा, इक्सी, टीसा और माइक्रोटीना तकनीक से प्रेग्नेंसी संभव है। जिन पुरुषों में स्पर्म नहीं, मगर टेस्टिस में शुक्राणु बनते हैं उनका पीसा या टीसा पद्धति द्वारा इक्सी किया जाता है। माइक्रो टीसा पद्धति से शुक्राणु ढूंढे जा सकते हैं और इक्सा पद्धति से प्रेग्नेंसी कराई जाती है। डॉ. अनिल बक्शी ने बताया, इक्सा पद्धति में एक-एक एग में सूई की मदद से स्पर्म डाला जाता है। टीसा उन लोगों में किया जाता है, जिनमें शुक्राणु नहीं होते।