"अहिंसा परमों धर्म : धर्म हिंसा तथैव च"
इसी मार्ग पर चलते हुए सूर्य सेन और उनके साथी ने एक साथ होकर कई अंग्रेजी ठिकानों पर धावा बोला, जिसमें 50 से अधिक बाल क्रांतिकारी जिनकी उम्र 14 से 18 वर्ष थी, तो वही दो महिला क्रांतिकारी प्रीतीलता वाद्देदार और कल्पना दत्त भी मास्टर दा के साथ इस योजना को अंजाम देने में शामिल हुई। 18 अप्रैल 1930, चटगांव शस्त्रागार लूट में मास्टर दा ने स्वतंत्र चट्टगांव की घोषणा करते हुए अपना तिरंगा वहां लहराया, लेकिन इस दिन शस्त्रागार लूट में मशीन बंदूकें और गोला बारूद जुटाने में मास्टर दा असफल हुए लेकिन उनकी सफलता उसी समय हो गई थी जब 50 से अधिक बच्चों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाई और एक साथ कई अंग्रेजी स्थानों पर धावा बोलकर उनकी नींव हिला दी।
जिसके बाद गुरिल्ला युद्ध में अंग्रेजों से हुई मुठभेड़ में 12 बाल क्रांतिकारी शहीद हो जाते हैं और 80 अंग्रेज सैनिक मारे जाते हैं और अज्ञातवास में सूर्य सेन के संगठन में रहे साथी नेत्र सेन ने मुखबरी करते हुए अपने मास्टर दा की गिरफ्तारी करवा देते हंै। तो वही देशभक्त रही नेत्र सेन की पत्नी अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर अपने ही पति की हत्या कर देती हैं। तो वही मास्टर दा को फांसी की सजा सुनाते हुए कहीं यातनाएं दी जाती है। जिसमें उनके शरीर के सभी जोड़ों को तोड़ दिया जाता है, दांतों को निकाल दिया जाता है, उनके नाखूनों को उखाड़ दिया जाता है और उनके बेहोश शरीर को फांसी की सजा दी जाती है। ताकि वो वंदे मातरम का उद्घोष न कर सके। उस वक्त भी सूर्य सेन "स्वतंत्र भारत" का सपना लिए कहते हैं कि "वतन हमारा रहे शादकाम और आबाद, हमारा क्या है अगर हम रहे,ना रहे"।
इस नाटक की खास बात यह रही कि नरसिंह अवतार, दुर्गा पूजा और मास्टर दा को दी गई सजा की प्रस्तुतिकरण के वक्त सजीव अभिनय से दर्शकों के रोंगटे खड़े हो गए। इस नाटक की जान सूर्यसेन बने कलाकार दिव्यांश शर्मा और कोरस रहा। तो वही कोरस ने अपने हाथों से पेट और सीने पर ताल देते हुए, क्रांतिकारियों को सलामी देते हुए, एक बिट बनाई जिसका खूबसूरत प्रस्तुतीकरण इस नाटक में हुआ।
साथ ही इस नाटक का निर्देशन और लेखन वरुण जोशी ने किया है, मंच पर कलाकार के रूप में थे दिव्यांश (सूर्यसेन), ज्योति राघव, निवेद्य, राजा वाणी, श्रेया, आयुश, अरुण, आशुतोष, फैजान और अमित जिन्होंने सहज अभिनय किया। लाइट पर मोहित और नेपथ्य में अरविंद रहे। साथ ही नाटक का मार्गदर्शन रंगकर्मी राघव राज ने किया।
इसी मार्ग पर चलते हुए सूर्य सेन और उनके साथी ने एक साथ होकर कई अंग्रेजी ठिकानों पर धावा बोला, जिसमें 50 से अधिक बाल क्रांतिकारी जिनकी उम्र 14 से 18 वर्ष थी, तो वही दो महिला क्रांतिकारी प्रीतीलता वाद्देदार और कल्पना दत्त भी मास्टर दा के साथ इस योजना को अंजाम देने में शामिल हुई। 18 अप्रैल 1930, चटगांव शस्त्रागार लूट में मास्टर दा ने स्वतंत्र चट्टगांव की घोषणा करते हुए अपना तिरंगा वहां लहराया, लेकिन इस दिन शस्त्रागार लूट में मशीन बंदूकें और गोला बारूद जुटाने में मास्टर दा असफल हुए लेकिन उनकी सफलता उसी समय हो गई थी जब 50 से अधिक बच्चों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाई और एक साथ कई अंग्रेजी स्थानों पर धावा बोलकर उनकी नींव हिला दी।
जिसके बाद गुरिल्ला युद्ध में अंग्रेजों से हुई मुठभेड़ में 12 बाल क्रांतिकारी शहीद हो जाते हैं और 80 अंग्रेज सैनिक मारे जाते हैं और अज्ञातवास में सूर्य सेन के संगठन में रहे साथी नेत्र सेन ने मुखबरी करते हुए अपने मास्टर दा की गिरफ्तारी करवा देते हंै। तो वही देशभक्त रही नेत्र सेन की पत्नी अन्य क्रांतिकारियों के साथ मिलकर अपने ही पति की हत्या कर देती हैं। तो वही मास्टर दा को फांसी की सजा सुनाते हुए कहीं यातनाएं दी जाती है। जिसमें उनके शरीर के सभी जोड़ों को तोड़ दिया जाता है, दांतों को निकाल दिया जाता है, उनके नाखूनों को उखाड़ दिया जाता है और उनके बेहोश शरीर को फांसी की सजा दी जाती है। ताकि वो वंदे मातरम का उद्घोष न कर सके। उस वक्त भी सूर्य सेन "स्वतंत्र भारत" का सपना लिए कहते हैं कि "वतन हमारा रहे शादकाम और आबाद, हमारा क्या है अगर हम रहे,ना रहे"।
इस नाटक की खास बात यह रही कि नरसिंह अवतार, दुर्गा पूजा और मास्टर दा को दी गई सजा की प्रस्तुतिकरण के वक्त सजीव अभिनय से दर्शकों के रोंगटे खड़े हो गए। इस नाटक की जान सूर्यसेन बने कलाकार दिव्यांश शर्मा और कोरस रहा। तो वही कोरस ने अपने हाथों से पेट और सीने पर ताल देते हुए, क्रांतिकारियों को सलामी देते हुए, एक बिट बनाई जिसका खूबसूरत प्रस्तुतीकरण इस नाटक में हुआ।
साथ ही इस नाटक का निर्देशन और लेखन वरुण जोशी ने किया है, मंच पर कलाकार के रूप में थे दिव्यांश (सूर्यसेन), ज्योति राघव, निवेद्य, राजा वाणी, श्रेया, आयुश, अरुण, आशुतोष, फैजान और अमित जिन्होंने सहज अभिनय किया। लाइट पर मोहित और नेपथ्य में अरविंद रहे। साथ ही नाटक का मार्गदर्शन रंगकर्मी राघव राज ने किया।