पार्टी की जिम्मेदारियों और टिकट के लिए एक मजबूत ठीया-पायां ढूंढ़ रहे भाजपा नगर अध्यक्ष कैलाश शर्मा इस बार लोधीपुरा से निकले तो उनके मन में एक ही बात थी, जितने भी नाराज हैं उनको होली के बहाने साध लूं। भैया इस बार विधायकी का रंग चढ़वाने की जुगत में सबसे पहले अपनी संकटमोचक माई सुमित्रा महाजन के घर पहुंचे। ताई के मनीषपुरी घर पर पहुंचे हाथ में गुलाल लेकर, ताई के पैरों में चढ़ाकर उनसे जिद करने लगे- ताई आप मेरे साथ सबके घर पर चलो ना, बहुतेरे नाराज बैठे हैं। ताई ने भी शर्मा को बोल दिया- कैलाश अब ताई पुरानी वाली ताई नहीं रही रे, उसे लोकसभा चलानी है, और तू है कि मानता ही नहीं। शर्मा भी मोरसली गली वाले पेलवान के साथ वहां से निकले तो रास्ते में संविदनगर के ठाकुर मिल गए।
अजयसिंह नरूका ने अध्यक्षजी को रुकवाया और रंगने लगे। दोनों दावेदार नंदानगर की गली में पहुंच गए। बाहर बैठीं काकीजी को गुलाल लगाकर आशीर्वाद लिया और भाई की खबर पूछी। काकीजी ने भी बोल दिया- हां है, अंदर चले जाओ।
भैया अंदर पहुंचे तो राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय की टीम पहले से ही मौजूद थी। उनके अंदर जाते ही पहले तो विजयवर्गीय और उसके बाद दादा दयालु रमेश भैया को गुलाल लगाकर भूल-चूक लेनी-देनी करने में लग गए। वहां दिल की बात बोलते उससे पहले ही टीम वालों ने साल के आखिर में बने हालात की बात खोद दी। शिवरात्रि पर राजबाड़ा के अंदर की भजन संध्या से तीन नंबर के बड़े हिस्से को खुश कर शिवभक्त आकाश को ऊंचाइयों पर पहुंचाने में मदद करने की बात करने लगे। अपना रंग फीका न हो जाए, इसलिए भैया ने भी बीच में नामाराशि का फायदा उठा लिया और मन की बात बोलकर वहां से निकल लिए।
वहां से निकलकर रामबाग होते हुए महेशनगर की ओर जा ही रहे थे कि मल्हाराश्रम पर कंधे पर कटार लटकाई उषा ठाकुर दिख गईं। दोनों ने गुलाल लगाया और एक-दूसरे को बधाई दी। दोनों हंस-हंसकर बातें करने लगे। भैया बहन से इस बार अपने लिए जुगाड़ जमाने की बात कह ही रहे थे कि इतने में पीछे से आकर खड़े हुए भाई ने कहा- दीदी सारे बूथवाले इकट्ठे हो गए हैं और गुलाल उड़ाने के लिए इंतजार कर रहे हैं। दीदी ने धीरे से माफी मांगी तो दिल की बात दिल में लेकर भाई आगे बढ़े और महेशनगर जाने के पहले रास्ते में छीपा बाखल में गाड़ी रुकवाई। यहां नाराज सत्तन गुरुचेलों के साथ ठंडाई की लहर में फाग के आनंद ले रहे थे।
गुरु को गुलाल लगाया तो गुरुने भी तरंग में रंग दिखा दिया। बोल ही पड़े- क्यों पेलवान, हमारी याद भी आती है या नहीं। गुरु के वचन को उनका आशीर्वाद मानकर सुनने के साथ ही उन्हें अपने रंग में रंगकर भैया आगे बढ़े तो दिल में सुकून था, तब ही गाड़ी महेशनगर पहुंची। वहां हैटवाले भैया अपनी विधानसभा में जाने की तैयारी कर रहे थे। बाहर से ही आवाज लगाई- ओ विधायक सुदर्शन गुप्ताजी, बाहर आ जाओ। पुराने साथी को घर के बाहर देख भाई भी सफारी के बटन लगाते-लगाते बाहर आ गए। शर्मा ने उन्हें गुलाल में तो रंगा, साथ ही कलर चुपड़कर अपना साथ देने के लिए मना लिया। गले लगते-लगते धीरे से बोल दिया- अगली बार मंत्रीजी के गले लगने की इच्छा है। दिल की बात सुन भैया भी साथ हो लिए। दोनों सीधे इतवारिया बाजार पहुंचे।
महापौर और विधायक दो-दो पद वाली मालिनी गौड़ भी नीचे ही खड़ी थीं। भाई-बहन ने जमकर होली खेली। इतना रंग उड़ाया कि पन्नी खाली हो गई। खाली पन्नी देख बहन ने अंगुली उठाकर इशारा कर दिया- नंबर वन बनाए रखने की शपथ आपने भी ली है, ध्यान रखो। भाई ने भी खाली पन्नी जेब में रख ली। यहां से टोली हार्डिया कंपाउंड की ओर बढ़ ही रही थी, वैसे ही रास्ते में जवाहर मार्ग पर स्कूटर पर जा रहे लालू-गोपी और ललित पोरवाल भी मिल गए।
टोली ने तीनों को रंगा और एक ही गाड़ी में तीन नंबर के चार दावेदार एक साथ आगे निकल पड़े। साथ बैठे गुप्ता ने चुटकी ले ली, कैलाश भाई ध्यान रखना, छात्र नेताओं ने कइयों को राजनीति सिखाई है। ललित भाई 35 साल से एक ही जगह के लिए जुटे हैं और अब किसी को भी खो कर आउट करने का उनको लाइसेंस भी मिल गया है। ये चुटकी रंग में भंग बनती उसके पहले ही तीन नंबर के आखिरी किनारे पर मौजूद हार्डिया कंपाउंड आ गया। यहां घर पर बाबा सुबह से ही अपनी सुर्खी में थे। मुंह में गुटखा दबाकर बैठे बाबा कुछ न बोले तो सबने उन्हें रंगना शुरू कर दिया। गुलाल में डुबोकर सब बाबा को हरिओम कर वहां से आगे बढ़ लिए।
भाई लोग भंवरकुआं चौराहे को पार कर ही रहे थे कि मधु वर्मा की याद आ गई। टोली मधु भैया के घर को मुड़ गई। वहां छोटे वर्मा बाहर बैठे मिल गए। मधु भैया का पूछा तो बताया, भैया तो हवा बंगला गए हैं। सब मिलकर हवा बंगला पहुंच गए और फोन लगाया तो पता चला, भैया तो मोघे साहब के घर पर ही हैं। सबको आता देख घर में बैठे मोघे और वर्मा ने कहा- हमें उम्मीद थी कि इतनी जल्दी भूला नहीं पाओगे। सबने सिर हिलाकर कह दिया- आपको तो भोपाल वाले ही याद कर-करके कुछ न कुछ करते रहते हैं, हम कैसे भूल जाते।
हंसी-मजाक के माहौल में सबने मधु भैया को पकड़कर रंगना शुरू किया तो मोघेजी भी मजे लेने लगे। सब मिलकर एबी रोड पर आए और जैसे ही बिजलपुर पहुंचे, रास्ते में जीतू पटवारी ने आवाज लगा दी- राजनीति में विरोधी हैं, लेकिन पर्सनली दुश्मनी थोड़े ही है, हमसे भी होली खेल लो। सब उतरे और पटवारी को भी अपने रंग में रंगने लग गए। इतने में आए जिराती ने धीरे से बोल दिया- फिर जीतू नाम का फायदा। कोई बात नहीं, रंग तो जीतू पर ही चढ़ा है। एक-दूसरे के रंग में रंगे नेताओं को देखकर धीरे से मालिनी गौड़ बोल ही दीं- कांग्रेसी भी अपने कामों में साथ देते हैं, चलो इन्हें भी अपने रंग में रंगें। सब मिलकर एबी रोड से ही होते हुए विष्णुपुरी प्रमोद टंडन के घर पहुंचे।
टंडन थकान के बीच होली छोड़ अपने घर में बूथ, सेक्टर, मंडलम् के लिए अपनों के नाम जोडऩे-घटाने में लगे थे। पहले तो मना करने लगे, लेकिन जब कोई नहीं माना तो बोल ही पड़े- दो दिन पहले माट्साहब ने होमवर्क दिया है, वह ही पूरा कर रहा हूं। डर है, पूरा नहीं हुआ तो छुट्टी न हो जाए। सबने मनाया तो गुलाल लगवाने के लिए मान गए।
होली की टोली यहां से पलसीकर सज्जनसिंह वर्मा के घर पहुंची तो वहां पहले से ही खड़े नरेंद्र सलूजा ने बताया, भैया तो देवास निकल गए हैं, शाम को आएंगे। सज्जन की रंगाई न कर पाने से निराश सबने मिलकर उनके हिस्से का रंग भी सलूजा पर ही उंड़ेल दिया। यहां से निकलकर सब मधुमिलन पर अर्चना जायसवाल के घर पहुंच गए। अर्चना पहले से ही जन्मदिन का केक चेहरे पर लगाए बैठी थीं। अर्चना को रंगने के बाद टोली सीधे कंचनबाग पहुंची। यहां शोभा ओझा तो घर में थीं और बाहर शेख अलीम और अरविंद बागड़ी भी मिल गए। अचानक घर पहुंचे हुरियारों ने जब उन्हें रंगना शुरू किया तो शोभा भी बोल पड़ीं- त्योहार का मजा दिल्ली से ज्यादा इंदौर में ही आता है।
यहां से निकलकर सारे बड़वानी प्लाजा में पहुंचे तो वहां रामेश्वर पटेल मिल गए। बड़े पटेल साहब को रंग लगाकर सब सत्तू भैया का पूछने लगे। पटेल साहब ने बताया, छोरा तो देपालपुर में ही है। दो दिनों से आया ही नहीं। यहां से निकलकर सारे वल्लभनगर पहुंचे। यहां पहले मोटा भाई पंकज संघवी को रंगा तो आगे ही रहने वाली उमाशशि शर्मा भी आवाज सुनकर बाहर आ गईं। दोनों के एक जगह मिलने पर मेहनत बची तो इमली बाजार की लाल बिल्डिंग के नीचे जमा हो गए और आवाज लगाने लगे।
लाल बिल्डिंग में ऊपर से ही झांककर अश्विन जोशी ने बोल दिया- भाई रंग नहीं लगाओगे तो ही नीचे आऊंगा। अश्विन जैसे ही नीचे आए उन्हें दोनों जीतू ने रंगना शुरू कर दिया। जोशी बिखरते इतने में सामने आईं महापौर को देख वे अपनी बात अपने दिल में ही रख गए। यहां से निकलकर सारे बाणगंगा पहुंच गए। यहां भागवत की तैयारी में लगे संजय शुक्ला के साथ ही गोलू भी मिल गए। दोनों को रंगने के दौरान ही किसी ने गोलू से पूछ लिया- आजकल क्या कर रहे हो? गोलू ने बोल दिया- तैयारी। गोलू के जवाब के बाद सब हंस उठे।