शहर के बड़े सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं होने पर सारा दबाव एमवाय अस्पताल पर होने को ‘पत्रिका ने गुरुवार के अंक में प्रमुखता से प्रकाशित किया था। इसी के साथ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की व्यवस्था का जायजा लेने पर हालात और भी खराब मिले। जिले के 28 केंद्रों पर हालात यह हैं कि डॉक्टर, स्टाफ के न रहने से वहां दिनभर में गिने-चुने मरीज ही पहुंचते हैं।
शहरी स्वास्थ्य केंद्रों के स्टाफ की हाजिरी लगाने के लिए बायोमेट्रिक मशीनें लगी हैं, लेकिन मॉनिटरिंग नहीं होने का फायदा उठाकर डॉक्टर नहीं आते। कई स्वास्थ्य केंद्रों में तो डॉक्टर संविदा नियुक्ति पर हैं, पर वरिष्ठ अधिकारियों से नजदीकी का फायदा उठाकर तनख्वाह में कटौती और कार्रवाई से बच जाते हैं। आरटीआई कार्यकर्ता डॉ. आनंद राय कहते हैं कि इन डॉक्टरों के मोबाइल नंबर, लोकेशन निकालेंगे तो सब निजी अस्पतालों में काम करते मिलेंगे।
होलकर साइंस कॉलेज के परिसर में पिछले हिस्से में खंडहरनुमा भवन में स्वास्थ्य केंद्र बना हुआ है। बाहर से देखकर तो पता ही नहीं चलता कि यह स्वास्थ्य केंद्र है, जबकि यहां डॉक्टर और स्टाफ भी पदस्थ है। इनके वेतन, भत्ते पर हर महीने 25 लाख रुपए खर्च होते हैं।
खजराना के रामनारायण पाटीदार परिवार ने 6 कमरों की व्यवस्थित डिस्पेंसरी बनवाकर दी थी। इसमें 4 साल से कोई डॉक्टर ही नहीं है। यह क्लिनिक वैक्सीन और दूसरी दवाओं का स्टोर रूम बनकर रह गया है। टीबी मरीजों की देखभाल करने वाले हरप्रसाद बताते हैं कि 2014 के पहले यहां डॉ. रावत पदस्थ थीं। तब 250 से ज्यादा मरीज आते थे, पर अब जांच और दवाइयां मिलना भी बंद हो गई हंै।