scriptहर दिन निकलता है 15 हजार टन प्लास्टिक कचरा | Industrialists' seminar on ways to deal with plastic waste and EPR | Patrika News

हर दिन निकलता है 15 हजार टन प्लास्टिक कचरा

locationइंदौरPublished: Aug 08, 2019 12:57:38 pm

निबटने के तरीकों और ईपीआर पर हुआ उद्योगपतियों का सेमिनार

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हर दिन निकलता है 15 हजार टन प्लास्टिक कचरा

इंदौर. देश में प्लास्टिक उद्योग पर विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व (ईपीआर) की अवधारणा प्रस्तुत की है, जिसके लिए अभी नियम और कायदे अस्पष्ट हैं। प्लास्टिक उद्योग पर बढ़ते दबाव के चलते देश के अनेक राज्यों में इसके तहत सख्ती भी हुई और कई कारखाने बंद किए गए, लेकिन बड़ी समस्या इसका पालना करना है। इस मामले में इंडियन प्लास्ट पैक फोरम ने एक सेमिनार का आयोजन किया।

विषय विशेषज्ञ के रूप में रिलायंस इंडस्ट्रीज के राजेश कोबा मौजूद थे। उन्होनें ईपीआर पर अभी तक के प्रयासों की जानकारी दी। साथ ही उद्योगपतियों को संगठन के रूप में मिल कर इस दिशा में शासन से बात करने के साथ पीआरओ या वेस्ट मैनेजमेंट कंपनी के रूप में प्रयास करने का सुझाव दिया।

कोबा ने बताया कि भारत में 10 फीसदी सालाना की बढ़ोतरी के साथ प्लास्टिक बनाया जा रहा है। रोज 15 हजार टन प्लास्टिक का कचरा पैदा होता है, जिसमें से 9 हजार टन प्रोसेस किया जाता है, जबकि शेष 6 हजार टन गंदगी फैलाने के लिए छोड़ दिया जाता है या लैंडफिल पहुंचा दिया जाता है।

लैंडफिल में जमा प्लास्टिक आसपास की मिट्टी, जमीन और यहां तक कि पानी को भी दूषित करता है। एक बार इस्तेमाल वाले प्लास्टिक का चलन बढ़ रहा है। उत्पादन और खपत का पैटर्न आने वाले समय में दोगुनी बढ़ोतरी दिखा रहा है। इसे रिसाइकल कर पाना तकरीबन नामुमकिन है, क्योंकि इसमें से ज्यादातर की मोटाई 50 माइक्रॉन से कम है।

कचरा बीनने वाले केवल वही उठाते हैं, जिसे रिसाइकल किया जा सकता है। पीईटी बोतलें तो आसानी से रिसाइकल हो जाती हैं, पर टेट्रा पैक, चिप पैक और एक बार इस्तेमाल किए जाने वाले केचप पाउच सरीखे ज्यादातर प्लास्टिक रिसाइकल नहीं होते।

विवाद की जड़ बना ईपीआर

आईपीपीएफ के सचिव सचिन बंसल ने बताया कि सोशल मिडिया पर फैले रहे भ्रम और भ्रांतियों के चलते प्लास्टिक पर प्रतिबंध की मांग उठती है। सरकार ने पर्यावरण के हित में ईपीआर की अवधारणा दी है, लेकिन अस्पष्टताओं के कारण विवाद की जड़ बन चुका है। ईपीआर शर्तों का पालन नहीं किए जाने से सैकड़ों प्लास्टिक प्रसंस्करण इकाइयों को सील कर दिया गया। पर सही तरीके से रिसायकलिंग सिस्टम का उपयोग किया जाए, तो इसे रोका जा सकता है। ईपीआर में कौन कितनी जिम्मेदारी उठाएगा, इस पर स्पष्ट नियम नही है।

निर्माताओं को लेना होगी जिम्मेदारी

सेमिनार बताया गया है कि समस्या से निबटने के लिए जिम्मेदारी उत्पादक पर ही डालना होगी, क्योंकि जो प्लास्टिक बनाता है, उसे ही इसे रीसाइकल करना या निबटाना होगा। ईपीआर की अवधारणा केवल कागजों पर मौजूद है, पर नियमों में बाद में बदलाव किए गए और ये उत्पादकों की जिम्मेदारी तय नहीं करते। दुनिया के कई देशों में अलग-अलग मॉडल पर काम किया जा रहा है। इन मॉडल पर छोटे शहरों में भी काम किया जा सकता है।

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