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INTERNATIONAL TIGER DAY : बाघों को बचाने में वॉरियर बन जुटे सीए, बिजनेसमैन ओर सोशल ग्रुप मेंबर्स

locationइंदौरPublished: Jul 29, 2019 03:38:19 pm

शहरवासियों की पहल से विलुप्त हो रहे टाइगर्स बचाने में मिल रही मदद

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INTERNATIONAL TIGER DAY : बाघों को बचाने में वॉरियर बन जुटे सीए, बिजनेसमैन ओर सोशल ग्रुप मेंबर्स

इंदौर. प्रकृति के संरक्षण में योगदान देने का सबका अपना एक तरीका होता है। कोई सीधे तौर पर एनजीओ बनाकर यह पहल करता है तो कोई अप्रत्यक्ष रूप से भी इसमें बड़ी भूमिका निभाता है। इंटरनेशनल टाइगर डे पर हम आपको शहर के उन लोगों के किस्से बता रहे हैं, जो अलग-अलग तरीकों से टाइगर्स को सेव करने में मदद कर रहे हैं।
सोशल ग्रुप बनाकर आदिवासियों को शिकार से रोका

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डॉक्टर और सीए शशांक अग्रवाल 1997 में पहली बार कान्हा गए। यहां पहुंचने पर उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि शहरों की भागदौड़ भरी जिंदगी में वे क्या पीछे छोड़ रहे हैं। इसके बाद यह सिलसिला शुरू हुआ और वे हर साल ही यहां आने लगे। वहां स्थानीय लोगों से बातचीत बढ़ी तो उन्हें पता चला कि गोंडा और वैगा प्रजाति के लोग सिर्फ 500 से 1000 रुपए के लिए टाइगर का शिकार कर देते हैं। इसके पीछे एक बड़ा नेटवर्क काम करता है और अंतरराष्ट्रीय स्तर के कई तस्कर मिले रहते हैं। वे इन्हें थोड़े बहुत पैसे देकर ये काम करवाते हैं। इसके बाद शशांक ने सरकारी अधिकारियों, पुलिस और स्थानीय लोगों के साथ एक सोशल ग्रुप बनाया और टाइगर को बचाने का काम शुरू किया। इन लोगों ने एक नेटवर्क डवलप किया, जिसमें पता चल जाता था कि स्थानीय आदिवासियों को कब पैसे ऑफर किए जा रहे हैं। जब भी कोई इन्हें पैसे ऑफर करता था तो शशांक का ग्रुप खुद उतने ही पैसे उन्हें देकर यह काम करने से रोकता था। पहले आदिवासियों को पैसे दिए और फिर उन्हें समझाना भी शुरू किया। फायदा यह हुआ कि आदिवासियों ने शिकारियों से पैसे लेना बंद कर दूसरे कामों से जीवन यापन करना शुरू कर दिया। शशांक बताते हैं कि हमने इस तरह से 5 से 7 टाइगर सेव किए। मुखबिर से सूचना मिलना और फिर टाइगर को बचाने तक की पूरी प्रक्रिया इतने गुप्त तरीके से की जाती थी कि किसी को खबर तक नहीं लगती थी। शशांक ने बताया, धीरे-धीरे सरकारी अधिकारियों ने इस सिस्टम को टेकओवर कर लिया और अब वे इस पूरी प्रक्रिया के तहत टाइगर बचाने का काम करते हैं।
इन सर्च ऑफ लॉस्ट पगमार्क

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पेशे से एचआर अंबुज जैन बहुत ही अनोखे तरीके से टाइगर को बचाने के लिए लोगों को जागरूक कर रहे हैं। उन्होंने इन सर्च ऑफ लास्ट पगमार्क के नाम से एक ग्रुप बनाया है। इसमें वे हर महीने इंदौर के लोगों को किसी जंगल या नेशनल पार्क ले जाते हैं। वे बताते हैं कि यह एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके अप्रत्यक्ष परिणाम बहुत बेहतर होते हैं। जो टूरिस्ट नेशनल पार्क, जंगलों में जाते हैं वे एक तरह से मुखबिर का काम करते हैं। हम अपने साथ जाने वाले हर व्यक्ति को टाइगर के पगमार्क (पद चिह्न) तलाशने और पहचानने जैसी एक्टिविटी करवाते हैं। जब भी हमें कोई बीमार या घायल टाइगर दिखता है तो हम तुरंत वन अधिकारियों को सूचित करते हैं। इसके साथ ही अगर यदि हमें किसी जगह पर कोई अवैध गतिविधि दिखती है तो हम उसे भी अधिकारियों तक पहुंचाते हैं।
फोटो अपलोड कर करते हैं बचाने की अपील

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अर्जुन यादव पेशे से व्यापारी हैं। उन्हें पर्यटन का खासा शौक है। भले ही शहर का चिडिय़ाघर हो, देश के नेशनल पार्क या फिर अंतरराष्ट्रीय जू। वे हर तरह के टाइगर्स से मिलने के लिए बैचेन रहते हैं। वे सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों से टाइगर्स के सुंदर फोटो अपलोड कर लोगों को इनकी खूबसूरती से परिचित करवाते रहते हैं। वे लगातार लोगों से यह अपील करते हैं कि इतने सुंदर जीव को बचाने के लिए हमें हर स्तर पर प्रयास करना चाहिए। टाइगर्स के साथ फोटो लेकर वे लोगों को यह भी संदेश देते हैं कि कोई भी जानवर तब तक खतरनाक नहीं होता, जब तक हम उसे परेशान नहीं करते। आज इंसान यही बात भूल रहा है और इसी वजह से टाइगर्स आज विलुप्त होते जा रहे हैं।
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