दबे-छुपे मुख्यमंत्री का विरोध करने वाले विजयवर्गीय अब खुलकर आ गए मैदान में, पार्टी को नुकसान के बावजूद आलाकमान की तरफ से कोई इशारा नहीं
kailash vijayvargiya controversial statement
इंदौर। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के प्रदेश की सत्ता और संगठन पर जुबानी हमलों ने भाजपा को भीतर तक हिला दिया है।
अब तक दबे-छुपे मुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष का विरोध करने वाले विजयवर्गीय बयानों के साथ खुलकर मैदान में आ गए हैं। इतना सब होने के बावजूद दिल्ली की चुप्पी हैरानी वाली है। इसके कई राजनीतिक मायने निकाले जा सकते हैं। वरना, सत्ता या संगठन विरोधी स्वरों पर नेतृत्व इस कदर चुप नहीं बैठा रहता। और वह भी तब, जब पार्टी के इन नेताओं के बयानों से घर के अंदर की बातें भी सामने आ रही हैं। जिन घपलों-घोटालों पर अब तक कांग्रेसी नेताओं के मुंह से आरोप सुने जाते थे, वह विजयवर्गीय उगल रहे हैं। बीच में अफसरों का नाम है, पर निशाने पर मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ही हैं।
गहरी दोस्ती का हवाला देकर ऐसी बातें उजागर की जा रही हैं, जो सिर्फ और सिर्फ भाजपा का नुकसान कर रही है। यूं भी विजयवर्गीय को परोक्ष रूप से मुख्यमंत्री का विरोधी माना जाता था। उनके हालिया बयानों ने ये साबित भी कर दिया। अचानक विजयवर्गीय के यूं मुखर होने से भाजपा के प्रादेशिक नेताओं की नींद उड़ गई है।
विजयवर्गीय के इन बयानों के क्या मायने? – हमने इंदौरवासियों से जल्द मेट्रो लाने का वादा किया था, लेकिन राज्य सरकार की गति से लग रहा है कि मेट्रो नहीं, बैलगाड़ी आने वाली है। हालांकि बाद में हंगामा मचने पर उन्होंने राज्य सरकार की जगह अफसरों का नाम लिख दिया।
– प्रदेश में अफसरशाही हावी है और कार्यकर्ताओं की सुनवाई नहीं हो रही।
– 2018 का चुनाव जीतना है तो भ्रष्ट अफसरशाही पर लगाम कसना होगी।
– प्रदेश अध्यक्ष को ऐसा लगता है कि वे शपथ लेकर मुख्यमंत्री बन गए हैं। वे अफसरों को संरक्षण देने के बजाय कार्यकर्ताओं का ध्यान रखें।
– डंपर कांड में प्रहलाद पटेल कुछ ‘खास खुलासा’ करना चाहते थे। तब वे जनशक्ति पार्टी में थे। मैंने उन्हें रोका और कहा कि आरोप-प्रत्यारोप कभी किसी के घर तक नहीं जाना चाहिए।
– कभी-कभी कुछ लोगों को यह गलतफहमी हो जाती है कि दुनिया उनके भरोसे चल रही है, ऐसे लोगों को बीच-बीच में हैसियत बताते रहना चाहिए।
– जो अफसर मेरी बात न माने, उसकी नींद उड़ा दूं। एक मिनट में ठीक कर दूं। कोई मेरी मर्जी के बगैर इंदौर में एक मिनट नहीं रह सकता।
इन सबके पीछे कौन? भाजपा नेताओं में इस घटनाक्रम के बाद बड़ी बेचैनी है। वे समझ नहीं पा रहे कि दिग्गज एक-दूसरे पर बयानों के तीर चलाकर सीधे-सीधे पार्टी का नुकसान कर रहे हैं और आलाकमान चुप है। वह आलाकमान, जो मामूली सी अनुशासनहीनता भी बर्दाश्त नहीं करता, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह अपने फैसलों से सबको चौंकाता है। उसकी चुप्पी का मतलब विजयवर्गीय को शह देना है, कहने के बजाय राजनीतिक विश्लेषक कह रहे हैं कि ऐसे बयान देने के लिए वहीं से उकसाया जा रहा है। अन्यथा, पार्टी विथ डिफरेंस में ये सब इतनी सहजता से नहीं चलता।