एक तरफ तो इंदौर मेट्रो ट्रेन व स्मार्ट सिटी वाला शहर बन रहा है तो दूसरी तरफ प्रदेश सरकार ने नगर निगम के चुनाव को देहाती तरीके से कराने का फैसला कर लिया। जैसे जिला पंचायत में सदस्य अपने अध्यक्ष का चुनाव करते है ठीक वैसे ही पार्षद अब महापौर का चुनाव करेंगे। ऐसा इंदौर में 25 साल पहले होता था। इस फॉर्मूले पर आखिरी बार मधुकर वर्मा महापौर बने जिसके बाद सरकार ने प्रत्यक्ष प्रणाली से महापौर का चुनाव कराना शुरू कर दिया।
पहला चुनाव कैलाश विजयवर्गीय लड़े थे जब वे दो नंबर विधायक थे। बाद में महापौर का पद महिला हुआ तो डॉ. उमाशशि शर्मा को मौका मिला। उनके बाद वरिष्ठ नेता कृष्णमुरारी मोघे और वर्तमान में मालिनी गौड़ विधायक के साथ महापौर का दायित्व संभाल ही हैं। देखा जाए तो दो बार विधायक रहकर महापौर बने, लेकिन अब ऐसा नहीं हो पाएगा।
इस पर संवैधानिक रोक नहीं है, लेकिन राजनीतिक समीकरण इस बात की इजाजत नहीं देंगे। महापौर बनने के लिए विधायक को पहले पार्षद बनना होगा। बाद में पार्षद तय करेंगे कि वे महापौर बन पाएंगे कि नहीं। ये राह अपने आप में बहुत ही कठिन होगी। वैसे तो पार्षदों को टिकट में विधायक की अहम भूमिका होता है।
अधिकांश पार्षद उनका ही अनुसरण करते हैं। ऐसे में विधायक के पार्षद लडऩे से उनका स्तर गिरेगा। वहीं, सामने वाला राजनीतिक दल पूरी ताकत से उसे हराने का प्रयास करेगा। ऐसे में कभी विधायक चुनाव हार गए तो भविष्य पर नया संकट खड़ा हो सकता है। आगे के चुनाव में उसके विधायक का टिकट देने में पार्टी गंभीरता से विचार करेगी। बैठे ठाले नई मुसीबत खड़ी हो जाएगी। इस वजह से भी विधायक भी पार्षद का चुनाव लडऩे से दूरी बनाएंगे।
पूर्व विधायकों की खिली बांछें
अप्रत्यक्ष प्रणाली चुनाव की घोषणा से भाजपा हलकों में निराशा है, क्योंकि उन्हें मालूम है कि प्रत्यक्ष चुनाव होने पर जीत की गारंटी है। इसके बावजूद कुछ नेताओं में खासा उत्साह है जिन्हें लग रहा है कि अब उनका रास्ता साफ हो सकता है। इनमें पूर्व महापौर, पूर्व विधायकों के साथ में सभापति व एमआईसी सदस्य की भी बड़ी संख्या है।
पूर्व महापौर में डॉ. उमाशशि शर्मा, नगर अध्यक्ष व पूर्व विधायक गोपीकृष्ण नेमा, सुदर्शन गुप्ता, जीतू जिराती के अलावा वरिष्ठ नेताओं में मधु वर्मा के नाम की चर्चा है। इधर, सभापति अजयसिंह नरुका, एमआईसी सदस्य चंदूराव शिंदे, राजेंद्र राठौर व मुन्नालाल यादव जैसे नेता भी खुश हैं। उन्हें मालूम है कि पार्षद का टिकट लाना उनके लिए कोई मुश्किल काम नहीं है।