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kargil vijay diwas : इस भारतीय जवान के पराक्रम को पाकिस्तानी सेना ने भी किया सलाम, नाम दिया था ‘शेरशाह’

locationइंदौरPublished: Jul 26, 2019 01:18:20 pm

कारगिल विजय दिवस स्वतंत्र भारत के लिए महत्वपूर्ण दिन है। कारगिल युद्ध 60 दिन चलने के बाद 26 जुलाई 1999 को खत्म हुआ।

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kargil vijay diwas : इस भारतीय जवान के पराक्रम को पाकिस्तानी सेना ने भी किया सलाम, नाम दिया था ‘शेरशाह’

इंदौर. कारगिल विजय दिवस स्वतंत्र भारत के लिए महत्वपूर्ण दिन है। कारगिल युद्ध 60 दिन चलने के बाद 26 जुलाई 1999 को खत्म हुआ। इसमें हमारे जांबाज सिपाहियों ने भारतभूमि को घुसपैठियों के चंगुल से मुक्त कराकर तिरंगा फहराया था। ‘ऑपरेशन विजय’ को सफलतापूर्वक अंजाम देने वाले शहीदों के पराक्रम को याद करते हुए 26 जुलाई को कारगिल दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन उन सिपाहियों के लिए समर्पित है जिन्होंने अपना आज हमारे कल के लिए बलिदान कर दिया। इनमें से एक जवान तो ऐसे भी थे जिनके पराक्रम को पाकिस्तानी सेना ने भी सलाम किया था।
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शहर में रहने वाले कर्नल निशित कुमार माथुर ने इस योद्धा के बारे में पत्रिका को जानकारी दी। कारगिल युद्ध में कर्नल निशित कुमार कमांडिंग ऑफिसर थे। उन्होंने बताया इस वीर जवान का नाम है विक्रम बत्रा। हिमाचल प्रदेश के कस्बे पालमपुर के 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स के कैप्टन विक्रम बत्रा ने कई सामरिक महत्व की चोटियों पर भीषण लड़ाई कर जीत हासिल की थी। वे अपनी टुकड़ी के साथ अटैक करने गए थे। इस दौरान उनके किसी साथी के गोली लगी तो वे उसे बचाने के लिए दौड़े। जब वे साथी को बचा रहे थे तब दुश्मन की गोली उनकी छाती पर लगी और उनकी मृत्यु हो गई। उनका पराक्रम देखकर पाकिस्तानी सेना के भी होश उड़ गए थे। उनकी बहादुरी को सलाम करते हुए उन्हें ‘शेरशाह’ नाम दिया था। बत्रा ने अकेले ही कई दुश्मनों को धूल चटा दी थी। विक्रम बत्रा को मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च सैनिक पुरस्कार ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।
पूरी रात जवानों की हौसला आफजाई की

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कर्नल निशित कुमार माथुर बताते हैं कि कारगिल की लड़ाई में सीओ (कमांडिंग ऑफिसर) था तब हमारी कश्मीर रेंजर मे फायरिंग प्रैक्टिस चल रही थी। 28 अप्रैल को हमें ऑपरेशनल तत्काल मैसेज मिला कि हमारी एक बैट्री (एक बैट्री में 6 तोपें होती हैं) अगली सुबह कारगिल को मूव करेगी। हमें पता चला कि पाकिस्तानियों ने घुसपैठ कर दी है। पूरी रात हम जवानों की हौसला आफजाई करते रहे। तोलोलिंक और टाइगर हिल इन सभी लड़ाई में हमारी तोपखानों का सबसे महत्वपूर्ण रोल था। इस बैट्री में 3 ऑफिसर्स और 120 जवान गए थे। सभी ने बहुत ही दिलेरी से युद्ध में हिस्सा लिया। मैंने देखा कि फायरिंग के दौरान किसी ने भी अपनी जान की परवाह नहीं की। हम सभी गनेरिया से फायर कर रहे थे तब ही हमारे ऊपर पाकिस्तान का फायर भी आया। इसमें हमारे 10 जवान घायल भी हुए थे। इसके बावजूद फटाफट सारी गनों को ठीक करके दूसरे दिन फिर से फायर करना शुरू कर दिया।
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कारगिल युद्ध की ऐसी है पृष्ठभूमि

कारगिल का युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में मई में कश्मीर के कारगिल जिले से प्रारंभ हुआ था। बड़ी संख्या में पाकिस्तानी सैनिकों व पाक समर्थित आतंकवादियों ने लाइन ऑफ कंट्रोल के भीतर प्रवेश कर कई महत्वपूर्ण पहाड़ी चोटियों पर कब्जा कर लिया था। इनको खदेडऩे में हमारे लगभग 527 से अधिक वीर योद्धा शहीद व 1300 से ज्यादा घायल हो गए। इनमें से अधिकांश अपने जीवन के 30 वसंत भी नहीं देख पाए थे। ये जवान अपने परिजन से वापस लौटकर आने का वादा आए थे, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। वे लौटे तो थे लेकिन लकड़ी के ताबूत में। उसी तिरंगे में लिपटे थे, जिसकी रक्षा की सौगन्ध उन्होंने उठाई थी।
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