17 अक्टूबर को है करवा चौथ, इस विधि-विधान से महिलाएं करें पूजन
करवा चौथ का व्रत रखने से मिलता है अखंड सौभाग्य का वरदान
कुंवारी लड़कियां भी मनवांछित वर के लिए रखती है व्रत
KARWA CHAUTH 2019 : जानिए तिथि, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और सरगी का महत्व
रीना शर्मा विजयवर्गीय @ इंदौर. करवा चौथ के व्रत का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। सुहागिन महिलाओं के लिए यह व्रत सभी व्रतों में सबसे खास है। इस दिन महिलाएं दिन भर भूखी-प्यासी रहकर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं। यही नहीं कुंवारी लड़कियां भी मनवांछित वर के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इस दिन पूरे विधि-विधान से माता पार्वती और भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने के बाद करवा चौथ की कथा सुनी जाती है। फिर रात के समय चंद्रमा को अघ्र्य देने के बाद ही यह व्रत संपन्न होता है। मान्यता है कि करवा चौथ का व्रत रखने से अखंड सौभाग्य का वरदान मिलता है।
17 अक्टूबर को है करवा चौथ करवा चौथ दीपावली से नौ दिन पहले मनाई जाती है। हिन्दू पंचांग के अनुसार करवा चौथ का व्रत हर साल कार्तिक मास की चतुर्थी को आता है। वहीं अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से यह त्योहार अक्टूबर के महीने में आता है। इस बार यानि वर्ष 2019 में करवा चौथ 17 अक्टूबर को है।
करवा चौथ की तिथि और शुभ मुहूर्तऐसे मनाया जाता है करवा चौथ का त्योहार करवा चौथ की तैयारियां कई दिन पहले से शुरू हो जाती हैं। सुहागिन महिलाएं कपड़े, गहने, श्रृंगार का सामान और पूजा सामग्री खरीदती हैं। करवा चौथ वाले दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले सरगी खाती हैं. इसके बाद सुबह हाथ और पैरों पर मेहंदी लगाई जाती है और पूजा की थालियों को सजाया जाता है। व्रत करने वाली आस-पड़ोस की महिलाएं शाम ढलने से पहले किसी मंदिर, घर या बगीचे में इक_ा होती है। यहां सभी महिलाएं एक साथ करवा चौथ की पूजा करती है।
इस दौरान गोबर और पीली मिट्टी से पार्वती जी की प्रतिमा स्थापित की जाती है। आज कल माता गौरी की पहले से तैयार प्रतिमा को भी रख दिया जाता है। विधि-विधान से पूजा करने के बाद सभी महिलाएं किसी बुजुर्ग महिला से करवा चौथ की कथा सुनती है। इस दौरान सभी महिलाएं लाल जोड़े में पूरे सोलह श्रृंगार के साथ पूजा करती हैं। चंद्रमा के उदय पर अर्घय दिया जाता है और पति की आरती उतारी जाती है। पति के हाथों पानी पीकर महिलाओं के उपवास का समापन हो जाता है।
करवा चौथ की पूजन सामग्री करवा चौथ के व्रत से एक-दो दिन पहले ही सारी पूजन सामग्री को इक_ा करके घर के मंदिर में रख दें। पूजन सामग्री इस प्रकार है- मिट्टी का टोंटीदार करवा व ढक्कन, पानी का लोटा, गंगाजल, दीपक, रूई, अगरबत्ती, चंदन, कुमकुम, रोली, अक्षत, फूल, कच्चा दूध, दही, देसी घी, शहद, चीनी, हल्दी, चावल, मिठाई, चीनी का बूरा, मेहंदी, महावर, सिंदूर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, छलनी, आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ और दक्षिणा के पैसे।
ये हैं करवा चौथ की पूजा विधिकरवा चौथ में सरगी करवा चौथ के दिन सरगी का भी विशेष महत्व है। इस दिन व्रत करने वाली महिलाएं और लड़कियां सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करने के बाद सरगी खाती हैं। सरगी आमतौर पर सास तैयार करती है। सरगी में सूखे मेवे, नारियल, फल और मिठाई खाई जाती है। अगर सास नहीं है तो घर का कोई बड़ा भी अपनी बहू के लिए सरगी बना सकता है। जो लड़कियां शादी से पहले करवा चौथ का व्रत रख रही हैं उसके ससुराल वाले एक शाम पहले उसे सरगी दे आते हैं। सरगी सुबह सूरज उगने से पहले खाई जाती है ताकि दिन भर ऊर्जा बनी रहे।
करवा चौथ की कथा पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक साहूकार के सात लडक़े और एक लडक़ी थी। सेठानी समेत उसकी बहुओं और बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा था। रात्रि को साहूकार के लडक़े भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी बहन से भोजन के लिए कहा. इस पर बहन ने जवाब दिया- “भाई! अभी चांद नहीं निकला है, उसके निकलने पर अर्घय देकर भोजन करूंगी.” बहन की बात सुनकर भाइयों ने क्या काम किया कि नगर से बाहर जा कर अग्नि जला दी और छलनी ले जाकर उसमें से प्रकाश दिखाते हुए उन्होंने बहन से कहा- “बहन! चांद निकल आया है. अर्घय देकर भोजन कर लो.”।
यह सुनकर उसने अपने भाभियों से कहा, “आओ तुम भी चन्द्रमा को अर्घय दे लो.” परन्तु वे इस कांड को जानती थीं, उन्होंने कहा- “बाई जी! अभी चांद नहीं निकला है, तेरे भाई तेरे से धोखा करते हुए अग्नि का प्रकाश छलनी से दिखा रहे हैं.” भाभियों की बात सुनकर भी उसने कुछ ध्यान न दिया और भाइयों द्वारा दिखाए गए प्रकाश को ही अर्घय देकर भोजन कर लिया. इस प्रकार व्रत भंग करने से गणेश जी उस पर अप्रस्सन हो गए. इसके बाद उसका पति सख्त बीमार हो गया और जो कुछ घर में था उसकी बीमारी में लग गया।
जब उसने अपने किए हुए दोषों का पता लगा तो उसने पश्चाताप किया गणेश जी की प्राथना करते हुए विधि विधान से पुन: चतुर्थी का व्रत करना आरम्भ कर दिया। श्रद्धानुसार सबका आदर करते हुए सबसे आशीर्वाद ग्रहण करने में ही मन को लगा दिया. इस प्रकार उसकी श्रद्धा भक्ति सहित कर्म को देखकर भगवान गणेश उस पर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवन दान दे कर उसे आरोग्य करने के पश्चात धन-संपत्ति से युक्त कर दिया. इस प्रकार जो कोई छल-कपट को त्याग कर श्रद्धा-भक्ति से चतुर्थी का व्रत करेंगे उन्हें सभी प्रकार का सुख मिलेगा।